Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[१७९ अहवा पढमपुढविमिच्छाइट्टिअवहारकालो अण्णेण पयारेण आणिजदे । तं जहाछट्ठमपुढविअवहारकालं विरलेऊण एकेकस्स रूवस्स जगसेटिं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि छट्ठमपुढविमिच्छाइद्विदव्यं पावदि । पुणो तत्थ एगरूवधरिदछट्ठपुढविदव्यं सत्तमपुढविदव्वेण भागे हिदे सेढितदियवग्गमूलमागच्छदि । तं विरलेऊण छहपुढविदव्वं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि सत्तमपुढविदव्वं पावदि । तं कमेण उवरिमविरलणछट्ठमपुढविदयस्सुवरि सुण्णट्ठाणं मोत्तूण दिण्णे रूवं पडि छट्ठ-सत्तमपुढविदव्यपमाणं पावदि हेट्ठिमविरलणरूवाहियमेत्तद्धाणं गंतूग एगरूवस्स परिहाणी च लभदि । पुणो उपरिमअणंतरछट्टपुढविदव्वं हेटिमविरलणाए समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि सत्तम. पुढविदव्यपमाणं पावदि । तं घेत्तूण उवरि सुगट्ठाणं मोत्तूण छट्ठमपुढविदव्वस्सुवरि दिणे हेद्विमविरलणमेत्तरूवं पडि छह-सत्तमपुढविदव्यपमाणं होदि हेडिमविरलणरूवाहिय
हर और अंशरूप सदृशका अपनयन करने पर उक्त उदारणका निम्नरूप होता है
२५६४ ३२७६८ = ८३८८६०८ प्र. पू. मि. अ,
अथवा, प्रथम पृथिवीका मिथ्यादृष्टि अवहारकाल दूसरे प्रकारसे लाते हैं। वह इसप्रकार है-छठवीं पृथिवीके अवहारकालको विरलित करके और उस विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति जगश्रेणीको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति छठवीं पृथिवीके मिथ्या दृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। अनन्तर वहां एक विरलनके प्रति प्राप्त छठवीं पृथिवीके द्रव्यको सातवीं पृथिवीके द्रव्यसे भाजित करने पर जगश्रेणीका तीसरा वर्गमूल लब्ध आता है। आगे उस लब्ध राशिका विरलन करके और विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति छठवीं पृथिबीके द्रब्यको समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति सातवीं पृथिवीका द्रव्य प्राप्त होता है। उस अधस्तन विरलनके प्रति प्राप्त सातवीं पृथिवीके द्रव्यको उपरिम विरलनमें छठवीं पृथिवीके द्रव्यके ऊपर शून्य स्थानको (उपरिम विरलनके जिस स्थानका द्रव्य अधस्तन विरलनमें दिया है उसे) छोड़कर क्रमसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति छठवीं और सातवीं पथिवीके द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है और एक अधिक अधस्तन विरलनमात्र स्थान जाकर एककी हानि प्राप्त होती है। पुनः उपरिम विरलनके अनन्तर स्थान (जहां तक सातवीं पृथिवीका द्रव्य दिया है उसके आगेके स्थान) के प्रति प्राप्त छठवीं पृथिवीके द्रव्यको अधस्तन विरलनमें समान खंड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति सातवीं पृथिवीके द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। उसे लेकर उपरिम विरलनमें शून्यस्थानको (जिस स्थानका द्रव्य अधस्तन विरलनमें दिया है उसे ) छोड़कर छठवीं पृथिवीके द्रव्यके ऊपर देने पर उपरिम विरलनके अधस्तन विरलनमात्र स्थानोंके प्रति छठवीं और सातवीं पृथिवीके द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है और उपरिम विरलनमें एक अधिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org