Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १९.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
पुणो उवरिमविरलणमेत्तछप्पुढविमिच्छाइट्ठिदव्यं पढमपुढविमिच्छाइद्विदयपमाणेण कस्सामो । तं जहा- रूवूणहटिमविरलणमेत्तछप्पुढविदव्येसु उवरिमविरलणम्हि समुदिदेसु पढमपुढविमिच्छाइट्टिपमाणं होदि । तत्थ एगा अवहारकालसलागा लब्भइ । पुणो वि उवरिमविरलणम्हि तत्तिएसु चेव छप्पुढविदव्वेमु समुदिदेसु अवरेगं पढमपुढविमिच्छाइद्विपमाणं होदि, विदिया च अवहारकालपक्खेवसलागा लब्भइ । एवं पुणो पुणो कीरमाणे रूवूणहेटिमविरलणादो उवरिमविरलणा असंखेज्जगुणा ति कट्ट सेढीए असंखेजदिभागमेत्ताओ अवहारकालपक्खेवसलागाओ लब्भंति । तासिमेगवारेणाणयणविही वुच्चदे । तं जहा-रूवूणहेट्टिमविरलणमेत्तछप्पुढविदधस्स जदि एगा अवहारकालपक्खेवसलागा लब्भदि, तो सामण्णणेरड्यमिच्छाइटिअवहारकालमत्तछप्पुढविमिच्छाइद्विदव्यस्स केत्तियाओ लभामो त्ति सरिसमवणिय रूवूणहेट्टिमविरलणाए सामण्णअवहारकालम्हि भागे हिदे अवहारकालपक्खेवसलागाओ आगच्छति । ताओ सरिसच्छेदं काऊण सामण्णणेरइयमिच्छाइटिअवहारकालम्हि पक्खित्ते पढमपुढविमिच्छाइटिअवहार
अब उपरिम विरलनमात्र छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यको प्रथम पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाणरूप करते हैं। उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है- उपरिम विरलनमें एक कम अधस्तन विरलनमात्र छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यके समुदित करने पर प्रथम पृथिवीगत मिथ्याहाष्ट द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है और वहां एक अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है। पुनः उपरिम विरलनमें उतने ही अर्थात् एक कम अधस्तन विरलनमात्र छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यके समुदित करने पर दूसरीवार प्रथम पृथिवीगत मिथ्यारष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है और दूसरी अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है। इसीप्रकार पुनः पुनः करने पर एक कम अधस्तन विरलनसे उपरिम चिरलन असंख्यातगुणा है, इसलिये जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होती हैं। आगे उन अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाओंकी एकवार लानेकी विधिको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है
एक कम अधस्तन विरलनमात्र अर्थात् एक कम अधस्तन विरलनगुणित छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यके प्रति यदि एक अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है तो सामान्य नारक मिथ्यादृष्टिसंबन्धी अवहारकालमात्र अर्थात् सामान्य नारक अवहारकालगुणित छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्यके प्रति कितनी अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होंगी, इसप्रकार त्रैराशिकमें सहशका अपनयन करके एक कम अधस्तन विरलनसे सामान्य अवहारकालको भाजित करने पर अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं आ जाती हैं। इनको समान छेद करके सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकालमें मिला देने पर प्रथम पृथिवीसंबन्धी नारक मिथ्यादृष्टि अवहारकाल
१ प्रतिधु ‘मागे हिदे पनिखचे' इति पाठः ।
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