Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१६४ ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, २, १९.
अहवा अवरेण पयारेण अवहारकालो उप्पाइज्जदे । तं जहा- सामण्णअवहारकालं विरलेऊण रूवं पडि जगपदरं समखंड करिय दिण्णे एकेकस्स रूवस्स सामण्णणेरइयमिच्छाइडि सिपमाणं पावेदि । पुणो तत्थ एगरूवधरिदसामण्णणेरइयमिच्छाइद्विरासिम्हि छपुढविमिच्छाइट्टि सिणा भागे हिदे किंचूणवारसवग्गमूलगुणिदस | मण्णणेरइयमिच्छाइडिविक्खभसूची आगच्छदि । एदं पुब्वविरलणाए हेट्ठा विलिय उवरि एगरूवधरिसामण्णणेरइयमिच्छाइट्ठिदव्वं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि छप्पूढविमिच्छाइट्टि सिपमाणं पावेदि । तं उवरिमविरलगाए दिसामण्णणेरइयमिच्छाइट्ठि सिम्हि पुध पुध अवणिदे उवरिमविरलणमेत्ता पढमपुढविमिच्छाइट्ठिरासीओ भवंति । छप्पुढविमिच्छाइट्टि सीओ वि तावदिया चेव ।
लामेके लिये विष्कंभसूची होती है । यहां किंचित् ऊन बारहवें वर्गमूलसे द्वितीयादि नरकों के मिथ्यादृष्टि राशिका सम्मिलित अवहारकाल अभिप्रेत है।
अथवा, दूसरे प्रकारसे प्रथम पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टियों का अवहारकाल उत्पन्न करते हैं । वह इसप्रकार है- सामान्य अवहारकालका विरलन करके और विरलित राशि के प्रत्येक एकके प्रति जगप्रतरको समान खण्ड करके देयरूपसे दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः उस विरलनके प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशिमें द्वितीयादि छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि द्रव्यका भाग देने पर कुछ कम बारहवें वर्गमूल से गुणित सामान्य नारक मिध्यादृष्टि जीवराशिकी विष्कंभसूची आती है । इसे पूर्व विरलन के नीचे विरलित करके और विरलित राशिके प्रत्येक एकके प्रति उपरिम विरलन के एकके प्रति प्राप्त सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यको समान खंड करके देयरूपले दे देने पर प्रत्येक एकके प्रति द्वितीयादि छह पृथिवीसंबन्धी नारक मिथ्यादष्ट द्रव्यका प्रमाण आ जाता है । उसे उपरिम विरलनके प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त सामान्य नारक मिथ्यादृष्टि द्रव्यमेंसे पृथक् पृथक् निकाल देने पर उपरिम विरलनका जितना प्रमाण है उतनी प्रथम पृथिवीगत नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशियां होती हैं । द्वितीयादि छह पृथिवीगत नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशियां भी उतनी ही होती हैं ।
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उदाहरण - छह पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि राशि ३२२५६६
१३१०७२ १
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१३१०७२ १
३२७६८ वार;
१२८,
=२x
६३
१३१०७२ : ३२२५६ =
२५६ ६३ ३२२५६ ३२२५६ ३२२५६ १ १
१
इस ३२२५६ को उप
रिम विरलन के प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त
६३
१३१०७२ मेंसे घटा देने पर ९८८१६ प्रमाण प्रथम पृथिवीगत मिथ्यादृष्टि द्रव्य राशियां होती है। और शेष ३२२५६ प्रमाण द्वितीयादि छद्द पृथिवियोंकी मिथ्यादृष्टि द्रव्य राशियां होती है ।
३२२५६
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