Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १८. ]
दव्यमाणागमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[ १५९
चैव पक्खेव सलागा । पुणो वि एत्तियमेत्तेसु चेत्र उवरिमविरल गम्हि तिगदिअसंजदसम्माइट्ठिदव्वे समुदिदेसु देव असंजदसम्माइदिव्त्रं लव्भदि, अवहारकालम्हि विदिया च पक्खे सलागा । एवं पुणो पुणो कीरमाणे आवलियाए असंखेज्जदि भागमेताओ अवहारकालपक्खेव सलागाओ लब्भंति, हेडिमविरलणादो उवरिमविरलणाए असंखेजगुणत्ता । एदासिमवहारकाल पक्खेव सलागाणमेगवारेण आगमणविहिं वत्तइस्लामो | मिविरल रूवूणमेततिगदिअसंजदसम्माइट्ठिदव्त्रेसु जदि एगा अवहारकालपक्खेवसलागा लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्तेसु तिगदिअसंजदसम्माइदिव्येसु केत्तियाओ पक्खेव सलागाओ लभामो त्ति रूवूणहेट्टिमविरलणाए उवरि विरलिदओघ असंजदसम्माइस अवहारकाले भागे हिदे आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ अवहारकालपक्खेवसलागाओ लब्भंति । ताओ ओघअसंजदसम्माइट्ठि अवहारकालम्हि पक्खित्ते देवअसंजदसम्म इडिअवहारकालो होदि । तमावलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदे देवसम्मामिच्छाविहार कालो होदि, असंजदसम्माइविक्कमणकालादो सम्मामिच्छाइट्टिउवकमणकालस्स असंखेज्जगुणहीणत्ता । तं संखेज्जरूवेहिं गुणिदे देवसासणसम्माइडिअवहार कालो असंयत सम्यग्दृष्टि जीवराशिका प्रमाण प्राप्त होता है और अवहारकाल में एक प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है । फिर भी एक कम अधस्तन विरलनमात्र उपरिम विरलनमें स्थित तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य के समुदित कर देने पर देव असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है और अवहारकालमें दूसरी प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है । इसीप्रकार पुनः पुनः करने पर आवलीके असंख्यातवें भागमात्र अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होती हैं, क्योंकि, अधस्तन विरलनसे उपरिम विरलन असंख्यातगुणा है । अब इन अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाओं एकवारमें लाने की विधिको बतलाते हैं- एक कम अधस्तन विरलनमात्र तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य में यदि एक अवहारकाल प्रक्षेपशलाका प्राप्त होती है। तो उपरम विरलनमात्र अर्थात् उपरिम विरलनगुणित तीनगतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्यों में कितनी प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होंगी, इसप्रकार ( त्रैराशिक करके ) एक कम अधस्तन विरलनका ऊपर विरलित ओघ असंयतसम्यग्दृष्टिके अवहारकाल में भाग देने पर आवलीके असंख्यातवें भागमात्र अवहारकाल प्रक्षेपशलाकाएं प्राप्त होती हैं । उन प्रक्षेपशलाकाओं को ओघ असंयतसम्यग्दृष्टिके अवहारकालमें मिला देने पर देव असंयतसम्यग्दृष्टि अवहारकालका प्रमाण आता है ।
उदाहरण - एक कम अधस्तन विरलन ३ उपरिम विरलन ४ः ४ : ३ =
४ + = ६; ६५५३६ ÷ १६ = १२२८८ देव असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य | १६३८४ - १२२८८ = ४०९६ तीन गतिसंबन्धी असंयतसम्यग्दृष्टि द्रव्य । देव असंयतसम्यग्दृष्टिसंबन्धी अवहारकालको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशिसंबन्धी अवहारकाल होता है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टिके उपक्रमण कालसे सम्यग्मिथ्यादृष्टिका उपक्रमणकाल असंख्यातगुणा हीन है । देव
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