Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं काऊण सूचिअंगुलं विहज्जमाणमिदि कद्द विक्खंभसूचिपरूवणं वग्गट्ठाणे खंडिद-भाजिद. विरलिद-अवहिद पमाण-कारण-णिरुत्ति-वियप्पेहि वत्तइस्सामो । तत्थ खंडिदादिचउक्कं सुगमं । तस्स पमाणं केत्तियं? सूचिअंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलपढमवग्गमूलाणि । केण कारणेण ? सूचिअंगुलपढमवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे सूचिअंगुलपढमवग्गमूलमागच्छदि । सूचिअंगुलपढमवग्गमूलस्स दुभागेण सूचिअंगुले भागे हिदे दोणि पढमवग्गमूलाणि आगच्छंति । पुणो पढमवग्गमूलस्स तिभागेण सूचिअंगुले भागे हिदे तिणि पढमवग्गमूलाणि आगच्छति । एवं पढमवग्गमूलस्स अखंसेज्जदिभागभूदसूचिअंगुलविदियवग्गमूलेण पढमवगमूले भागे हिदे लद्धेण सूचिअंगुले भागे हिदे
वर्गस्थानमें खंडित, भाजित, विरलित, अपहृत, प्रमाण, कारण, निरुक्ति, और विकल्पके द्वारा विकभसूचीका प्रतिपादन करते हैं। उनमें प्रारंभके खण्डित आदि चारका कथन सुगम है । ( इन चारोंका सामान्य मिथ्यादृष्टि राशिके सम्बंध उदाहरण सहित कथन पृष्ठ ४१ और ४२ में किया है, उसीप्रकार यहां भी समझना चाहिये ।)
शंका-विष्कंभसूचीका प्रमाण कितना है ?
समाधान-सूच्यंगुलके असंख्यातवां भाग विष्कंभसूचीका प्रमाण है जो सूच्यंगुलके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण है।
शंका--किस कारणसे सूच्यंगुलके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण विष्कंभसूची होती है?
समाधान- सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलका सूच्यंगुलमें भाग देने पर सूच्यंगुलका प्रथम वर्गमूल आता है (२४२३)। सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलके द्वितीय भागका
सूच्यंगुलमें भाग देने पर सूच्यंगुलके दो प्रथम वर्गमूल लब्ध आते हैं (२;
अन्य आते हैं (५४३.२४५)। पुन
सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलके तीसरे भागका सूच्यंगुलमें भाग देने पर सूच्यंगुलके तीन प्रथम
।। इसीप्रकार सूच्यंगुलके प्रथम वर्गमूलके असं.
लब्ध आते हैं
४२
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ख्यातवें भागरूप सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे प्रथम वर्गमूलके भाजित करने पर जो लब्ध
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