Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १७.] दव्वपमाणाणुगमे णिरयगदिपमाणपरूवणं
[१३९ गहिदं वत्तइस्सामो । विदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे वि विक्खंभसूची आगच्छदि । अधवा विदियवगमूलेण सूचिअंगुलं गुणेऊण पदरंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । केण कारणेण ? सूचिअंगुलेण पदरंगुले भागे हिदे सूचिअंगुलो आगच्छदि । पुणो वि विदियवग्गमूलेण सूचिअंगुले भागे हिदे विक्खंभसूची आगच्छदि । एवमागच्छदि त्ति कटु गुणेऊण भागग्गहणं कदं । तस्स भागहारस्स अद्धच्छेदणयमेत्ते रासिस्स अद्धच्छेदणए कदे विक्खंभसूची आगच्छदि । एवं संखेज्जासंखेज्जाणतेसु णेदव्वं । एत्थ
पहले गृहीत उपरिम विकल्पको बतलाते हैं- सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलका सूच्यंगुलमें भाग देने पर विष्कंभसूची आती है।
उदाहरण-२४.२ = २ विष्कंभसूची.
क
उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हों उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी विष्कंभसूची आती है।
उदाहरण–२ के क अर्धच्छेद होते हैं । २ के क अर्धच्छेद किये जायं तो अंतिम
ख-क राशि २ होगी। सूच्यंगुलके द्वितीय वगमूलमें क = ३ है, और सूच्यंगुलमें ख = ३ है; इसलिये २ x २ = २ के अर्धच्छेद २ के अर्धच्छेदोंके बराबर करने पर २ = २' अर्थात् २ आ जाता है जो विष्कंभसूचीका प्रमाण है।
अथवा, सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका प्रतरांगुलमें भाग देने पर विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है, क्योंकि, सूच्यंगुलसे प्रतरांगुलके भाजित करने पर सूच्यंगुल आता है। पुनः सूच्यंगुलके द्वितीय वर्गमूलसे सूच्यंगुलके भाजित करने पर विष्कंभसूची आती है । इसप्रकार विष्कंभसूची आती है, ऐसा समझकर पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया।
उदाहरण--
= २ विष्कभसूची. २x२x२ २ उक्त भागहारके जितने अर्धच्छेद हो उतनीवार उक्त भज्यमान राशिके अर्धच्छेद करने पर भी विष्कंभसूचीका प्रमाण आता है। इसीप्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त स्थानों में ले
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