Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, २, ५. जो सो वियप्पो सो दुविहो, हेटिमवियप्पा उवरिमवियप्पो चेदि । तत्थ हेट्ठिमवियप्पं वत्तइस्सामो। तं जहा, वेरूवे हेट्ठिमवियप्पो णत्थि । कारणं सव्वजीवरासीदो धुवरासी अन्भहिओ जादो त्ति । अहरूवे हेडिमवियप्पं वत्तइस्सामो। धुवरासिणा सव्धजीवरासिं गुणेऊण सव्वजीवरासिघणे भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? जदि सव्वजीवरासिणा तस्स घणो अवहिरिज्जदि तो सधजीवरासिउवरिमवग्गो आगच्छदि । पुणो वि धुवरासिणा सव्वजीवरासिउपरिमवग्गे भागे हिदे मिच्छाइद्विरासी आगच्छदि ? एवं मिच्छाइद्विरासिमागमणं मणेणावहारिय गुणेऊण भागग्गहणं कदं। एत्थ दुगुणादिकरणं वत्तइस्सामो। तं जहा, सबजीवरासिणा सधजीवरासिघणे ओवट्टिदे सव्वजीवरासिउवरिमवग्गो आगच्छदि । दुगुणिदसव्यजीवरासिणा सयजीवरासिघणे ओवट्टिदे सव्वजीवरासिउवरिमवग्गस्स दुभागो आगच्छदि । तिगुणिदसधजीवरासिणा सव्वजीवरासिघणे ओवट्टिदे सव्वजीवरासिउवरिमवग्गस्स तिभागो आगच्छदि । अणेण
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विकल्प दो प्रकारका है, अधस्तनविकल्प और उपरिमविकल्प । इन दोनों से अधस्तन विकल्पको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है
द्विरूपवर्गधारामें (प्रकृतमें ) अधस्तनविकल्प संभव नहीं है, क्योंकि, संपूर्ण जीवराशिसे ध्रुवराशिका प्रमाण अधिक है। अब अष्टरूप अर्थात् धनधारामें अधस्तनविकल्प बतलाते हैं। ध्रुवराशिसे संपूर्ण जीवराशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका संपूर्ण जीवराशिके घनमें भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है, क्योंकि, यदि संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणसे संपूर्ण जीवराशिका घन अपहृत किया जाता है तो संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गका प्रमाण आता है। और फिर ध्रुवराशिके प्रमाणका संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणके उपरिमवर्गमें भाग देने पर मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण आता है। इसप्रकार मिथ्यादृष्टिरासि आती है इस बातको मनमें निश्चित करके पहले गुणा करके अनन्तर भागका ग्रहण किया है। उदाहरण-जीवराशि १६, धुवराशि १९३, १६ ४ १९९३ = ४२९६
जीवराशि १६ का घन ४०९६.४९९६ = १३ मिथ्यादृष्टि अब यहां पर द्विगुणादिकरणविधिको बतलाते हैं। वह इसप्रकार है-संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणसे संपूर्ण जीवराशिके घनके अपवर्तित करने पर संपूर्ण जीवराशिके उपरिमघंर्गका प्रमाण आता है (४०९६ : १६ - २५६)। द्विगुणित संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणसे संपूर्ण जीवराशिके घनके अपवर्तित करने पर संपूर्ण जीवराशिके उपरिमवर्गका दूसरा भाग आता है (४०९६ : ३२ = १२८)। त्रिगुणित संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणसे संपूर्ण जीवराशिके घनके अपवर्तित करने पर संपूर्ण जीवराशिके उपरिमवर्गके प्रमाणका तीसरा भाग आता है (४०९६-४८-८५३)। इसप्रकार इसी विधिसे जबतक ध्रुवराशिका प्रमाण
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