Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५०] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, २, ५. एदाहि गाहाहि पडिबोहियस्स सिस्सस्स पच्छिमवियप्पो वत्तव्यो । तं जहा, सिद्धतेरसगुणट्ठाणावट्टिदमिच्छाइडिभागब्भहियसव्वजीवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ? सिद्धतेरसगुणट्ठाणभजिदसयजीवरासिभागहीणसधजीवरासी आग
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उदाहरण ( बीजगणितसे )---- स; ब - ड नया भागहार;
नया लब्ध = बड-बस-स+ बडड
सड इसे पुराने भजनफल स में जोड़नेसे नया भजन
फल आ जाता है। ( अंकगणितसे)-३६-३, ९ नया भागहार,
१, ३+१=४ नया भजनफल. इन गाथाओंके द्वारा जो शिष्य प्रतिबोधित किया जा चुका है उसको पश्चिम विकल्प बतलाया जाता है । वह इसप्रकार है
शंका-सिद्धराशि और सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवर्ती जीवराशिका मिथ्यादृष्टि जीवराशिमें भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उससे अधिक संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर कौनसी राशि आती है ? ।
___ समाधान-सिद्धराशि और सासादनसम्यग्दृष्टि आदि तेरह गुणस्थानवर्ती राशिका संपूर्ण जीवराशिमें भाग देने पर जो प्रमाण लब्ध आवे उतनी कम संपूर्ण जीवराशि आती है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है । इसप्रकार कारणका वर्णन समाप्त हुआ।
विशेषार्थ-यहां पर जो अन्तिम विकल्प बतलाया गया है उसका गणित पूर्व निश्चित संकेतोंके अनुसार निम्न प्रकार बैठता हैउदाहरण ( बीजगणितसे)-- (अंकगणितसे )
१६२१४ = १६-१६
किन्तु एक तो गणितसे ये राशियां समान नहीं सिद्ध होती, और दूसरे उनका जो फल निकलता है वह मिथ्यादृष्टि राशिका प्रमाण न होनेसे प्रकृतमें उसका कोई उपयोग दिखाई नहीं देता। बहुत कुछ सोच विचार करने पर भी हम इस विषयमें ठीक निर्णय पर नहीं पहुंच सके। तथापि विषयके पूर्वापर प्रसंगको देखते हुए यहां अन्तिम विकल्पमें वही बात आना चाहिये जिससे यह प्रकरण प्रारंभ हुआ है, और जिसका कि
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