Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५.]
[४७
दव्वपमाणाणुगमे मिच्छाइडिपमाणपरूवणं लद्धंतरसंगुणिदे अवहोरे भज्जमाणरासिम्हि । पक्खित्ते उप्पज्जइ लद्धसहियस्स जो रासी ॥ २७ ॥ हारान्तरहृतहाराल्लब्धेन हतस्य पूर्वलब्धस्य । हारहृतभाज्यशेषः से चान्तरं हानिवृद्धी स्तः ॥ २८ ॥
वद्धिका--
प
+
म
बुद्धिापर्फम पर हानिका- पम - -
हानिका
-
-
( अंकगणितसे)वृद्धिका- ३६ = १; ३६ = ६; ६ छिन्न अवहार + १ = + १ = ५,
९.५ = १८ हानिरूप अवहार। ३६१ = १० वृद्धिरूप लब्ध. हानिका - ३ - १ = ३, ९३ = १८; ३६ = २ = ६ - ४ हानिरूप लब्ध. (भागहारके स्थानमें लब्ध लेकर प्रक्रिया करनेसे पहलेके समान ही भागहार आ जाता है।)
दो लब्ध राशियोंके अन्तरसे भागहारको गुणित करके और इससे जो उत्पन्न हो उसे भज्यमान राशिमें मिला देनेपर अधिक लब्धकी जो भज्यमान राशि होगी वह उत्पन्न होती है ॥२७॥
उदाहरण (बीजगणितसे )- स, = ड, ब (स-ड) + क = व स = अ
( अंकगणितसे )--भज्यमान राशि ४० और ३६, भाजक ४, ४०:४१०, ३६:४९, १०.९=१ लब्धान्तर ४४१४+३६=४० अधिक लब्धकी भज्यमान राशि ।
'हारान्तरसे अर्थात् हारके एक खंडसे हारको अपहृत करके जो लब्ध आवे उससे पूर्व लब्धको गुणित करने पर उत्पन्न हुई राशिका (और नये लब्धका) भागहारसे भाजित भाज्यशेष ही अन्तर है जो हानि और वृद्धिरूप होता है ॥२८॥
१ प्रतिषु । हृतस्य ' इति पाठः । २ प्रतिषु शेषस्य चा.' इति पाठः । किन्तु अजमेरस्थप्रतौ अत्र स्वीकृतः पाठः उपलभ्यते ।
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