Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, २. ] दव्यपमाणाणुगमे मिच्छाइडिपमाणपरूवणं
[१७ 'मिच्छादिट्ठी केवडिया' इदि सिस्सेण पुच्छिदे 'अणंता' इदि पमाणपरूवणादो जाणिअदि। ण च सेस-अणताणि पमाणपरूवयाणि तत्थ तधादसणादो । जदि गणणाणतेण पगदं सेस-दसविध-अणंतपरूवणं किमद्वं कीरदे ? वुच्चदे
अवगयणिवारणटुं पयदस्स परूवणाणिमित्तं च ।
संसयविणासणटुं तच्चत्थवधारणद्वं च ॥ १२ ॥ उत्तं च पुयाइरिएहि
जत्थ बहू जाणेज्जो अपरिमिदं तत्थ णिक्खिवे सूरी ।
जत्थ बहू अ ण जाणइ च उत्यवो तत्थ णिक्खेवो ॥ १३ ॥ अधवा णिक्खेवविसिट्टमेदं वणिज्जमाणं वत्तारस्सुप्पथोत्थाणं कुज्जा इदि णिक्खेवो कीरदे । तथा चोक्तम्
प्रमाण-नयनिक्षेपर्योऽर्थो नाभिसमीक्ष्यते । युक्तं चायुक्तवद् भाति तस्यायुक्तं च युक्तवत् ॥ १४ ॥
शंका-- यह कैसे जाना जाता है कि प्रकृतमें गणनानन्तसे प्रयोजन है ?
समाधान-'मिथ्यादृष्टि जीव कितने हैं' इसप्रकार शिष्यके द्वारा पूछने पर 'अनन्त हैं ' इत्यादि रूपसे प्रमाणका प्ररूपण करनेसे जाना जाता है कि प्रकृतमें गणनानन्तसे प्रयोजन है। इस गणनानन्तको छोड़कर शेष अनन्त प्रमाणके प्ररूपण करनेवाले नहीं हैं, क्योंकि, शेष अनन्तोंमें गणनारूपसे कथन नहीं देखा जाता है।
शंका- यदि प्रकृतमें गणनानन्तसे प्रयोजन है तो गणनानन्तको छोड़कर शेष दश प्रकारके अनन्तोंका प्ररूपण यहां पर किसलिये किया है ?
समाधान-अप्रकृत विषयके निवारण करनेके लिये, प्रकृत विषयके प्ररूपण करनेके लिये, संशयका विनाश करनेके लिये, और तत्त्वार्थका निश्चय करने के लिये यहां पर सभी अनन्तोंका कथन किया है ॥ १२॥
पूर्वाचार्योंने भी कहा है
जहां जीवादि पदार्थों के विषयमें बहुत जानना चाहे, वहां पर आचार्य सभीका निक्षेप करेन तथा जहां पर बहुत न जाने, तो वहां पर चार निक्षेप अवश्य करना चाहिये ॥१३॥
अथवा निक्षेपके विना वर्णन किया गया यह विषय कदाचित् वक्ताको उन्मार्गमें ले जावे, इसलिये यहां पर सभी अनन्तोंका निक्षेप किया है। कहा भी है
प्रमाण, नय और निक्षेपोंके द्वारा जिस पदार्थकी समीक्षा नहीं की जाती है उसका अर्थ युक्त होते हुए भी अयुक्तसा प्रतीत होता है और कभी अयुक्त होते हुए भी युक्तसा
१ सं. प. गा. १५,
२ सं. प. गा. १४ ( देखो पाठ भेद)
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