Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, २. दसंवग्गिदरासिस्स वग्गसलागा भवंति । एसो वग्गसलागरासी पढमवारवग्गिदसंवग्गिदरासीदो उवरि एगमवि वग्गट्ठाणं ण च वड्डिदो, तेणेदेसिं दोण्हं रासीणं वग्गसलागाओ सरिसाओ। एदाणं च वग्गसलागाओ जहण्णपरित्ताणंतादो असंखेजगुणाओ। जदि एसो रासी सव्वजीववग्गसलागरासिणा सरिसो हवदि तो तिण्णिवारवग्गिदसंवग्गिदरासिणा सव्वजीवरासी वि सरिसो होज्ज; ण च एवं । तं कधं ? ' जहण्ण-अणंताणंतं वग्गिजमाणे जहण्ण-अणंताणंतस्स हेहिमवग्गणहाणेहिंतो उवरि अणंतगुणवग्गट्ठाणाणि गंतूण सव्वजीवरासिवग्गसलागा उप्पजदि' त्ति परियम्मे वुत्तं । गुणगारो पि जम्हि जम्हि अणतयं मग्गिजदि तम्हि तम्हि अजहण्ण-अणुक्कस्साणताणतयं घेत्तव्यं । ण च तदियवारवग्गिद
अब आगे इन सब राशियोंकी वर्गशलाकाएं और अर्धच्छेद लिखे जाते हैं-- ज. प. अ. ज. अ. अ. प्र. व. सं. द्वि. व. सं. तृ. व. सं. अ क ख
ग २+ अ + १ २ + क २ + ख २ + ग
क.
२
२२ + अ + १
प्रमाण
वर्ग श.
२ + अ +
१ २ + क २+ख २ + ग अ २+ अ +१ २ + क २ + ख व
२ + ग अर्धच्छेद
२ ___ यह तीसरीवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाराशि प्रथमवार बर्गितसंवर्गित राशिसे ऊपर एक भी वर्गस्थानसे वृद्धिको प्राप्त नहीं हुई है, अर्थात् प्रथमवार वर्गितसंवर्गित राशिके उपरिम वर्गके भीतर ही तीसरीवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाराशि आती है, इसलिये इन दोनों राशियोंकी, अर्थात् प्रथमवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाएं और तृतीयवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाओंकी वर्गशलाकाएं समान हैं, जो वर्गशलाकाएं जघन्य परीतानन्तसे असंख्यातगुणी है। यदि यह तृतीयवार वर्गितसंवर्गित राशिकी वर्गशलाकाराशि संपूर्ण जीवोंकी वर्गशलाकाराशिके समान होती है, ऐसा मान लिया जावे, तो तीनवार वर्गितसंवर्गितराशिके समान संपूर्ण जीवराशि भी हो जावे । परंतु ऐसा है नहीं ।
शंका-यह कैसे ?
समाधान -- जघन्य अनन्तानन्तके उत्तरोत्तर वर्ग करने पर जघन्य अनन्तानन्तके अधस्तन वर्गस्थानोंसे ऊपर अनन्तगुणे वर्गस्थान जाकर संपूर्ण जीवराशिकी वर्गशलाकाएं उत्पन्न होती हैं, ' इसप्रकार परिकर्ममें कहा है। गुणकार भी जहां जहां अनन्तरूप देखने में आता है वहां वहां अजघन्यानुत्कृष्ट
प्रम अनन्तानन्तरूप गुणकारका ग्रहण करना
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