Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ४. त्ति सिद्धं । किम कालपमाणं वुच्चदे ? मिच्छाइद्विरासिस्स मोक्खं गच्छमाणजीवे पडुच्च संते वि वए ण वोच्छेदो होदि त्ति जाणावणहूँ ।
खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ ४ ॥
खेत्तपमाणमुल्लंघिय अप्पवण्णणिजं भावपमाणं किमिदि ण परूविज्जदि ? खेत्तपरूवणादो भावपरूवणं महदरमिदि ण परूविज्जदे । तं जहा, भावपमाणं णाम णाणं । तं पि पंचविहं । तत्थ वि एकेकमणेयवियप्पं । तत्थ वि अणेगाओ विपडिवत्तीओ त्ति । खेतेण कधं मिच्छाइहिरासी मिणिज्जदे ? वुच्चदे-जधा पत्थेण जव-गोधूमादिरासी मिणिज्जदि तधा लोएण मिच्छाइद्विरासी मिणिज्जदि । एवं मिणिज्जमाणे मिच्छाइट्ठिरासी अणंत. लोगमेत्तो होदि त्ति । एत्थुवउज्जती गाहा
पत्थेण कोदवेण व जह कोइ मिणेज्ज सव्वबीजाई । एवं मिणिज्जमाणे हवंति लोगा अणता दु ॥ २२ ॥
शंका- यहां पर कालकी अपेक्षा प्रमाण किसलिये कहा गया है ?
समाधान-मोक्षको जानेवाले जीवोंकी अपेक्षा संसारी जीवराशिका व्यय होने पर भी मिथ्यावृष्टि जीवराशिका सर्वथा विच्छेद नहीं होता है, इस बातका ज्ञान करानेके लिये यहां पर कालकी अपेक्षा प्रमाण कहा है।
क्षेत्रप्रमाणकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोकप्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवराशिका प्रमाण है ॥ ४ ॥
शंका-यहां पर क्षेत्रप्रमाणका उल्लंघन करके अल्पवर्णनीय भावप्रमाणका प्ररूपण क्यों नहीं किया गया है ?
समाधान-क्षेत्रप्रमाणके प्ररूपण करनेकी अपेक्षा भावप्रमाणका प्ररूपण अतिविस्तृत है, इसलिये भावप्रमाणका प्ररूपण पहले नहीं किया गया है। भावप्रमाणका प्ररूपण अतिविस्तृत है आगे इसीका स्पष्टीकरण करते हैं। ज्ञानको भावप्रमाण कहते हैं । वह भी पांच प्रकारका है । उन पांच भेदोंमें भी प्रत्येक अनेक भेदरूप है। उसमें भी अनेक विवाद हैं । इससे सिद्ध होता है कि भावप्रमाणका प्ररूपण क्षेत्रप्रमाणके प्ररूपणकी अपेक्षा अतिविस्तृत है।।
शंका-क्षेत्रप्रमाणके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशि कैसे मापी, अर्थात् जानी, जाती है ?
समाधान-जिसप्रकार प्रस्थसे जौ, गेहूं आदिको राशिका माप किया जाता है, उसीप्रकार लोक प्रमाणके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशि मापी अर्थात् जानी जाती है। इसप्रकार लोकके द्वारा मिथ्यादृष्टि जीवराशिका माप करने पर वह अनन्त लोकमात्र है। यहां पर इस विषयकी उपयोगी गाथा दी जाती है
जिसप्रकार कोई प्रस्थसे कोदोंके समान संपूर्ण बीजोंका माप करता है उसीप्रकार मिथ्यादृष्टि जीवराशिकी लोकसे अर्थात् लोकके प्रदेशोंसे तुलना करने पर मिथ्यादृष्टि जीव
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