Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, २, ५. जीवरासी चेव आगच्छदि । दुभागभहियसव्वजीवरासिणा सव्वजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ? तिभागहीणसव्वजीवरासी आगच्छदि । केण कारणेण ? सव्वजीवरासिवग्गक्खेत्तं पुव्वावरायामेण तिणि खंडाणि करिय तत्थेगखंडं घेत्तूण खंड करिय संधिदे सव्वजीवरासिदुभागवित्थारं वेति । भागायामखेतं होदि। एदं अधियविरलणाए दिण्णे एकेकस्स रूवस्स तिभागहीणसव्वजीवरासी पावेदि। तिभागब्भहियसव्वजीवरासिणा सयजीवरासिउवरिमवग्गे भागे हिदे किमागच्छदि ? चउभागहीण
( अंकगणितसे )-२५६ : १६ = १६ शंका-दूसरा भाग अधिक संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर कौनसी राशि आती है ?
समाधान-तीसरा भाग हीन संपूर्ण जीवराशि आती है। उदाहरण ( बीजगणितसे)- क'__ = २ क = क - क
क
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( अंकगणितसे )- १६ का दुसरा भाग ८ है; अतः द्वितीय भाग ८ अधिक १६ = २४ का २५६ में भाग देने पर १०२ आता है, जो जीवराशि १६ का तीसरा भाग हीन है।
शंका-दूसरा भाग अधिक संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर तीसरा भाग हीन जीवराशि किस कारणसे आती है ?
समाधान-संपूर्ण जीवराशिके वर्गरूप क्षेत्रके पूर्व और जीवराशिवर्ग पश्चिमके विस्तारसे तीन खंड करके और उनमें से एक खंड ग्रहण १ करके उसके भी दो खंड करके संधित अर्थात् प्रसारित कर देने पर २ संपूर्ण जीवराशिका दूसरा भागरूप विस्तार जाना जाता है । यही ३ | भागायाम क्षेत्र है। इसको अधिक विरलन राशिके प्रत्येक एकके ऊपर देयरूपसे देने पर प्रत्येक एकके प्रति तीसरा भागहीन संपूर्ण जीवराशि प्राप्त होती है।
शंका-तीसरा भाग अधिक संपूर्ण जीवराशिका संपूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देने पर वया आता है ?
समाधान-चौथा भाग हीन संपूर्ण जीवराशि आती है। यहां पर भी कारणका पहलेके समान कथन करना चाहिये। अर्थात् संपूर्ण जीवराशिके वर्गरूप क्षेत्रके पूर्व और पश्चिम विस्तारसे चार खण्ड करके और उनमें से एक खण्डके तीन खण्ड करके प्रसारित कर देने पर संपूर्ण जीवराशिका तीसरा भागरूप विस्तार जाना जाता है। अनन्तर इन खण्डोंको
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