Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५. ]
दव्यमाणानुगमे मिच्छाइद्विपमाणपरूवणं
[ ३९
अधिगम णापमाणमिदि एगो । सो वि अधिगमो पंचविधो मदि-सुद-ओहिमणपज्जव केवलणाणभेदेण । एक्केकं तिविहं दव्य - खेत्त - कालभेएण | दव्वत्थिविसयणाणं दव्वभावमाणं । खेत्तविसिदव्वस्स गाणं खेत्त भावपमाणं । तहा कालस्स वि वत्तव्यं । सुते भावपमाणं ण वृत्तं ? ण, तस्स अणुत्तसिद्धीदो। ण च भावपमाणमंतरेण तिन्हं पमाणाणं सिद्धी भवदि, सहियपमाणाभावे गउणपमाणस्सासंभवादो, भावपमाणं बहुवण्णणीयमिदि वा हेदुवादाहेदुवादाणं अवधारणसिस्साणमभावादो वा । अधवा एयं भावपमाणं वत्तव्यं । तं जहा - मिच्छाइट्ठिरासिणा सव्वपज्जए भागे हिदे जं भागलद्धं तं भागहारमिदि कट्टु सव्वपज्जयस्सुवरि खंडिद - भाजिद - विरलिद - अवहिदाणि वसव्वाणि । तं जहा - सव्वपज्जए भागहारमेत्ते खंडे कदे तत्थ एगखंडपमाणं मिच्छाइट्ठिरासी होदि । खंडिदं गदं । तेणेव भागहारेण सव्वपज्जए भागे हिदे भागलद्वपमाणं मिच्छारासी होदि । भाजिदं गदं । तं चेत्र भागहारं विरलेदूण सव्वपज्जयं समखंडं काढून
अधिगम और ज्ञानप्रमाण ये दोनों एकार्थवाची शब्द हैं। वह ज्ञानप्रमाण भी मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञानके भेदले पांच प्रकारका है । तथा उन पांचों से प्रत्येक ज्ञानप्रमाण द्रव्य, क्षेत्र और कालके भेदसे तीन तीन प्रकारका है। उन तीनोंमेंसे द्रव्योंके अस्तित्व विषयक ज्ञानको द्रव्यभावप्रमाण कहते हैं । क्षेत्रविशिष्ट द्रव्यके ज्ञानको क्षेत्रभावप्रमाण कहते हैं । इसीप्रकार कालभावप्रमाणके विषय में भी जानना चाहिये ।
शंका- सूत्रमें भावप्रमाणका स्वतंत्र कथन नहीं किया है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उसकी बिना कहे ही सिद्धि हो जाती है । दूसरे भावप्रमाणके विना शेष तीन प्रमाणोंकी सिद्धि भी नहीं हो सकती है, क्योंकि, योग्य अर्थात् मुख्य प्रमाणके अभाव में गौणप्रमाणका होना असंभव है । अथवा, भावप्रमाण बहुवर्णनीय है, अथवा, हेतुवाद और अहेतुवादके अवधारण करनेवाले शिष्योंका अभाव होनेसे सूत्रमें स्वतन्त्ररूपसे भावप्रमाणका कथन नहीं किया है।
अथवा, इस भावप्रमाणका कथन करना चाहिये । वह इस प्रकार है, मिथ्यादृष्टि जीवराशिका संपूर्ण पर्यायों में भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसे भागहाररूपसे स्थापित करके संपूर्ण पर्यायोंके ऊपर खंडित, भाजित, विरलित और अपहृत इनका कथन करना चाहिये | आगे उन्हीं चारोंका स्पष्टीकरण करते हैं
संपूर्ण पर्यायों के भागहारप्रमाण खंड करने पर जितने खंड आवें, उनमें से एक खण्डका जितना प्रमाण हो तन्मात्र मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है । इसप्रकार खण्डितका वर्णन समाप्त हुआ ।
पूर्वोक्त भागहारका ही संपूर्ण पर्यायोंमें भाग देने पर जो भजनफल लब्ध आवे तत्प्रमाण मिथ्यादृष्टि जीवराशि होती है । इसप्रकार भाजितका वर्णन समाप्त हुआ ।
पूर्वोक्त भागहार को ही विरलित करके और डल चिरलित राशिके प्रत्येक एकके ऊपर
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