Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, १.]
दव्वपमाणाणुगमे णिदेसपरूवणं अतिशय्य कथनं वा निर्देशः । स द्विविधः द्विप्रकारः शरीरस्वभावरूपप्रकृतिशीलधर्माणां निर्देश इव । ओघेण, ओघं वृन्दं समूहः संपातः समुदयः पिण्डः अवशेषः अभिन्नः सामान्यमिति पर्यायशब्दाः। गत्यादिमार्गणस्थानैरविशेषितानां चतुर्दशगुणस्थानानां प्रमाणप्ररूपणमोघनिर्देशः। चतुर्दशगुणस्थानविशिष्टसकलजीवराशिप्ररूपणादादेशः किन्न स्यादिति चेन्न, सर्वजीवराशिनिरूपणं प्रति प्रतिज्ञाभावात् । क प्रतिज्ञास्याचार्यस्येति चेत्, जीवसमासप्रमाणनिरूपणे प्रतिज्ञा । सा कुतोऽवसीयत इति चेत्, ‘एत्तो इमेसि चोहसण्हं जीवसमासाणं' इत्यादिसूत्रादवसीयते । सर्वजीवराशिव्यतिरिक्तचतुर्दशगुणस्थानानाम भावात्तथापि सर्वजीवराशिरेव निरूपितस्स्यादिति चेन्न, जीवसमुदायस्यानिश्चय होता है उस प्रकारके कथन करनेको निर्देश कहते हैं। अथवा, कुतीर्थ अर्थात् सर्वथा एकान्तवादके प्रस्थापक पाखण्डियोंको उलंघन करके अतिशयरूप कथन करनेको निर्देश कहते हैं। वह निर्देश शरीरके स्वभाव, रूप, प्रकृति, शील और धर्मके निर्देशके समान दो प्रकारका है। उनमेंसे एक ओघनिर्देश है। ओघ, वृन्द, समूह, संपात, समुदय, पिण्ड, अवशेष,
और सामान्य ये सब पर्यायवाची शब्द हैं। इस ओघनिर्देशका प्रकृतमें स्पष्टीकरण इसप्रकार हुआ कि गत्यादि मार्गणास्थानोंसे विशेषताको नहीं प्राप्त हुए केवल चौदहों गुणस्थानोंके अर्थात् चौदहों गुणस्थानवी जीवोंके प्रमाणका प्ररूपण करना ओघनिर्देश है।
शंका-वह ओघनिर्देश चौदहों गुणस्थानविशिष्ट संपूर्ण जीवराशिके प्रमाणका प्ररूपण करनेवाला होनेसे आदेशनिर्देश क्यों नहीं कहलाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, ओघनिर्देशमें संपूर्ण जीवराशिके निरूपणकी प्रतिक्षा नहीं की गई है। __शंका-तो फिर आचार्यने ओघनिर्देशकी किस विषयमें प्रतिज्ञा की है ?
समाधान- आचार्यने ओघनिर्देशसे जीवसमालोंके ( गुणस्थानोंके ) प्रमाणके निरूपणमें प्रतिज्ञा की है।
शंका--आचार्यने ओघनिर्देशसे जीवसमासोंके प्रमाणके निरूपणमें प्रतिज्ञा की है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-' एत्तो इमेसिं चोहसण्हं जीवसमासाणं' इत्यादि सूत्रसे जाना जाता है कि ओघनिर्देशसे जीवसमासोंके विषयमें आचार्यकी प्रतिक्षा है।
- शंका--संपूर्ण जीवराशिको छोड़कर चौदह गुणस्थान पाये नहीं जाते हैं, इसलिये चौदह गुणस्थानोंके निरूपण करने पर भी तो संपूर्ण जीवराशिका ही निरूपण हो जाता है ?
समाधान--नहीं, क्योंकि, ओघनिर्देशके निरूपणमें समस्त जीवसमुदाय अविवक्षित है।
विशेषार्थ-यद्यपि गुणस्थानों में संपूर्ण जीवराशिका अन्तर्भाव हो जाता है, फिर भी एक जीवके भी एक पर्यायमें संपूर्ण गुणस्थान संभव हैं, इसलिये यह कहा गया है कि ओघनिर्देशमें
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