Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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(सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदयलि-पणीदे
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
तस्स सिरि-वीरसेणाइरिय-विरहया टीका
धवला केवलणाणुजोइयछद्दव्वमणिजियं पवाईहि ।।
णमिऊण जिणं भणिमो दव्वणिओगं गणियसारं ॥१॥) ( संपहि चोद्दसण्हं जीवसमासाणमत्थित्तमवगदाणं सिस्साणं तेसिं चेव परिमाणपडिबोहणद्वं भूदबलियाइरियो सुत्तमाह
दव्वपमाणाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य ॥१॥
जिन्होंने केवलज्ञानके द्वारा छह द्रव्योंको प्रकाशित किया है और जो प्रवादियों के द्वारा नहीं जीते जा सके ऐसे जिनेन्द्रदेवको मैं (वीरसेन आचार्य) नमस्कार करके गणितकी जिसमें मुख्यता है ऐसे द्रव्यानुयोगका प्रतिपादन करता हूं ॥१॥
विशेषार्थ--द्रव्यानुयोगका दूसरा नाम द्रव्यप्रमाणानुगम या संख्याप्ररूपणा है। यद्यपि द्रव्य छह हैं फिर भी इस अधिकारमें गुणस्थानों और मार्गणास्थानोंका आश्रय लेकर केवल जीवद्रव्यकी संख्याका ही प्ररूपण किया गया है।
जिन्होंने चौदहों गुणस्थानोंके अस्तित्वको जान लिया है ऐसे शिष्योंको अब उन्हीं चौदहों गुणस्थानोंके अर्थात् चौदहों गुणस्थानवी जीवोंके परिमाण (संख्या) के ज्ञान करानेके लिये भूलबलि आचार्य आगेका सूत्र कहते हैं
द्रव्यप्रमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है, ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥ १॥
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