Book Title: Shatkhandagama Pustak 03
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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६०
पृष्ठ नं.
षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय
पृष्ठ नं.,क्रम नं. विषय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतु- २१३ अपर्याप्तकालमें गुणस्थान-प्रतिरिन्द्रिय पदसे किनका ग्रहण किया
पन्न जीव लब्ध्यपर्याप्तक नहीं गया है, इसका स्पष्टीकरण ३११ होते, इसका समर्थन
३१८ २०२ सयोगिकेवलीके पंचेद्रियत्वका
२१४ इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा भागासमर्थन ३११) भाग
३१८ २०३ विकलत्रय जीवोंका कालकी २१५ इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा अल्प__ अपेक्षा प्रमाण ३१२ बहुत्व
३२२ २०४ द्वीन्द्रियादि राशियां सर्वथा
३ कायमागणा ३२९-३८६ आयसहित होनेसे विच्छिन्न नहीं होती हैं, फिरभी ये असंख्याता
२१६ पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजसंख्यात अपसर्पिणियों और
स्कायिक, वायुकायिक, तथा उत्सर्पिणियोंके द्वारा विच्छिन्न
बादरपृथिवीकायिक, बादरअपकाहोती हैं, ऐसे विरोधका परिहार ३१२
यिक, बादरतैजस्कायिक, बादर२०५ विकलत्रयजीवोंकाक्षेत्रकी अपेक्षा
घायुकायिक,बादरवनस्पतिकायिक प्रमाण
प्रत्येकशरीर तथा इन पांच बाद२०६ पंचेन्द्रियसामान्य और पंचेन्द्रिय
रोंके अपर्याप्तः सुक्ष्मप्रथिवीकापर्याप्तोंका द्रव्य, काल और
यिक, सूक्ष्मअप्कायिक, सूक्ष्मक्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण
तैजस्कायिक, सूक्ष्मवायुकाायक, २०७ विकलत्रयोंके प्रमाण-प्रतिपादक
तथा इन चार सूक्ष्मों के पर्याप्त सूत्रके साथ पंचेन्द्रियोंके प्रमाण
और अपर्याप्तोंका प्रमाण ३२९ का प्रतिपादक सूत्र क्यों नहीं २१७ पृथिवीकायिकका अर्थ, प्रसंगसे कहा, इसका स्पष्टीकरण ३१५
कर्मके भेदोंका उल्लेख, तथा बादर २०८ विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रियोंका
का स्वरूप
३३० अवहारकाल तथा द्रव्यप्रमाण ३१५/२१८ पृथिवीकायिक आदिके प्रत्येक २०९ सासादनगुणस्थानसे लेकर
होते हुए उन्हें 'प्रत्येकशरीर' अयोगिकेवली गुणस्थान तक
यह विशेषण क्यों नहीं लगाया पंचेन्द्रियसामान्य और पंचेन्द्रिय
जाता है, इसका स्पष्टीकरण
३३१ पर्याप्तोंका प्रमाण
३१७ २१९ सूक्ष्म, पर्याप्त और अपर्याप्त २१० जिनकी इन्द्रियां नष्ट होगई हैं,
इनके स्वरूपोंका स्पष्टीकरण ३३१ ऐसे सयोगी अयोगी जिनको २२० विग्रहगतिमें विद्यमान वनस्पतिपंचेन्द्रिय कैसे कहा जा सकता
कायिक जीव प्रत्येक है, या है, इस शंकाका समाधान ३१७ साधारण, इस शंकाका समा. २११ लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रियोंका द्रव्य,
धान
३३२ काल और क्षेत्रकी अपेक्षा प्रमाण ३१७/२२१ तैजस्कायिकराशिके उत्पन्न कर२१२ लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रियों के प्रमाण
नेकी विधि
३३४ का प्रतिपादक सूत्र पंचेन्द्रिय २२२ चौथीवार कितनी गुणकारशलामिथ्याष्टियोंके प्रमाण प्रतिपादक
काओंके जानेपर तैजस्कायिकसूत्रके साथ नहीं कहनेका कारण ३.१८ राशि उत्पन्न होती है, इससे
३१४
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