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निकला था... और रास्ते में राजेन्द्र मिल गया ! वह मुझे प्रवचन में ले
आया । मैं जैन नहीं हूँ... इसलिए यहाँ आने में मुझे संकोच होता था, परंतु राजेन्द्र ने आग्रह किया, यहाँ ले आया, मेरे ऊपर उसने बड़ा उपकार किया । प्रवचन सुनता गया... और मेरा मन स्वस्थ बनता गया। मेरी उलझनों का समाधान हो गया। अब मैं कभी भी आत्महत्या का विचार नहीं करूँगा । आपका मेरे ऊपर महान् उपकार हुआ। __वास्तव में यह उपकार जिनवाणी का था । जिनवचनों का था । मैं तो मात्र माध्यम बना था । जिनवाणी ने उस युवक को बचा लिया । नया जीवन प्रदान किया। सगर चक्रवर्ती - भावना से मनःशान्ति :
यह तो अभी-अभी की घटना है, ऐसी अनेक सुखद घटनाएँ घटती रहती हैं । प्रसंग-प्रसंग पर बताता रहूँगा घटनाओं को । परंतु एक प्राचीनतम रोमांचक घटना है । आपने सुनी भी है यह घटना । अष्टापद तीर्थ की महापूजा में आपने सुना था कि अष्टापद तीर्थ की रक्षा करते-करते सगर चक्रवर्ती के ६० हजार पुत्रों की मृत्यु हो गई थी । नागकुमार देवों ने ६० हजार राजकुमारों को जला दिये थे । ६० हजार राजकुमार तो देवगति में चले गये थे, परंतु उनके पिता सगर चक्रवर्ती ने जब ये समाचार सुने... वे पागल से हो गये थे। करुण आनंद करने लगे थे । किसी मनुष्य में शक्ति नहीं थी कि जो चक्रवर्ती को शान्त करें !
आखिर देवराज इन्द्र को आना पड़ा । देवराज इन्द्र तत्त्वज्ञ होते हैं, सम्यग् दृष्टि होते हैं। उन्होंने चक्रवर्ती को अनित्य-भावना से समझाया । संसार में स्वजनों के सारे संबंध अनित्य होते हैं। आयुष्य, आरोग्य, शक्ति और जीवन... सब कुछ अनित्य होता है !' अच्छी तरह समझाया... तब जाकर चक्रवर्ती का शोक दूर हुआ । वे स्वस्थ बने । यह क्या था ? जिनवाणी का उपकार था । जिनवाणी ने चक्रवर्ती की रक्षा की। डाकू नरवीर : जिनवाणी से उपशान्त :
राजा कुमारपाल का पूर्वजन्म जानते हो ? पूर्वजन्म में वे डाकू थे । नाम था नरवीर । गुजरात और मालवा की सीमा के ऊपर उसका अड्डा था । डाकुओं का पूरा गिरोह था । हजारों मुसाफिरों को लूटा था, मारा था। परंतु एक दिन, मालव देश के सैनिकों के हाथ नरवीर का गिरोह मारा गया और सैनिकों के
शान्त सुधारस : भाग १
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