________________
i
ही अनुभवनरूप क्रिया, ताकरि प्रकाश करता है-आपकू आफ्हीकरि जाने है, प्रगट करे है। इस ।। विशेषणकरि आत्माकू तथा ज्ञानकू सर्वथापरोक्ष ही माननेवाले जे जेमिनीय भह प्रभाकर मतके ।
मीमांसक तिनिका व्यवच्छेद है,तथा ज्ञान अन्यशानकरि जान्याजाय है आप आपकू जाने नाहीं 卐 ऐसें मानते जे नैयायिक तिनिका प्रतिषेध है । बहुरि कैसा है? 'सर्वभावांतरच्छिवे' कहिये सर्व ._ जीव अजीव जे आपतें अन्य चराचरपदार्थ,तिनिकू सर्वक्षेत्रकालसंबंधी सर्व विशेषणनिकरि सहित ' एककाल जाननेवाला है। इस विशेषणकरि सर्वज्ञका अभाव माननेवाले जे मीमांसक आदि .- तिनिका निराकरण है। ऐसे विशेषणनिकरि अपना इष्ट देव सिद्ध करि नमस्कार किया है। '
भावार्थ इहां मंगलके अर्थ शुद्ध आत्माकू नमस्कार किया है, सो कोई पूछे है-इष्टदेवका .. - नाम ले नमस्कार क्यों नहीं किया ? ताका समाधान-जो यह अध्यात्मग्रंथ है, तातें जो इष्ट" देवका सामान्यस्वरूप सर्वकर्मरहित सर्वज्ञ वीतराग शुद्ध आत्माही है। सो समयसार कहने में इष्टप्र देव आयगया, एक ही नाम लेने में अन्यवादी मतपक्षका विवाद करेंहैं, तिनि सर्वका निराकरण विशे
पणनित जनाया । अन्यवादी अपने इष्टदेवका नाम लेहैं, ताका तौ अर्थ बाधासहित है। बहुरि 卐 स्याद्वादी जैनीनिकै सर्वज्ञ वीतराग शुद्ध आत्मा इष्ट है, ताके नाम कथंचित् सर्व ही सत्यार्थ .. संभव है । इष्टदेवकू परमात्मा भी कहिये, परमब्रह्म कहिये, परमज्योति कहिये, परमेश्वर कहिये, म + शिव कहिये, निरंजन कहिये, निष्कलंक कहिये, अक्षय कहिये, अव्यय कहिये, शुद्ध, कहिये, बुद्ध कहिये, - - अविनाशी कहिये, अनुपम कहिये, अच्छेद्य, अभेद्य, परमपुरुष, निराबाध, सिद्ध, सत्यात्मा,चिदानंद, क "सर्वज्ञ, वीतराग, अहंत, जिन, आप्त, भगवान, समयसार इत्यादि हजारा नामकरि कहिये। किछू . म विरोध नाहीं। सर्वथा एकांतवादीनिकै भिन्न नाममें विरोध है । अर्थ यथार्थ समझना ऐसें जानना। दोहा- प्रगटै निज अनुभव करै, सत्ता चेतनरूप।
सर ज्ञाता लरिखकै नमो. समयसार सबभप ॥२॥
“乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐