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शब्द ऐसे हैं इसलिए अस्पर्श:
प्राकृतव्याकरणे
माणंसिणी मणंसिणी । माहिआई अहिमाई । पारोहो परोहो । पावासू पवासू । पाडिप्फद्धी पडिएफद्धी । समृद्धि । प्रसिद्धि । प्रकट । प्रतिपत् । प्रसुप्त । प्रतिसिद्धि । सदृक्ष | मनस्विन् । मनस्विनी । अभियाति । प्ररोह । प्रवासिन् । प्रतिस्पधिन् । आकृतिगणोयम् । तेन । अस्पर्शः बाकं सो। परकीयं पारकेरं पारक्कं । प्रवचनं पावयणं । चतुरन्तम् चाउरन्तं इत्याद्यपि भवति ।
समृद्धि इत्यादि प्रकार के शब्दों में, आदि अकार का विकल्प से दीर्घ ( यानी आकार ) होता है । उदा०-- सामिद्धी पडिफद्धी । ( इन शब्दों के मूल संस्कृत प्रतिस्पर्धिन् । यह ( समृद्धयादि गण ) आकृति गण है; चाउरतं इत्यादि भी ( वर्णान्तर ) होते हैं । दक्षिणे हे ॥ ४५ ॥
) समृद्धि
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दक्षिणशब्दे आदे रतो हे परे दीर्घो भवति । दाहिणो । ह इति किम् । दक्खिणो ।
दक्षिण शब्द में ( क्ष का वर्णान्तर होकर, आदि अकार के ) आगे 'ह' आने पर, आदि अकार का दोर्घ ( पानी आकार ) होता है । उदा - - दाहिणो । ( आगे ) ह आने पर ऐसा ( सूत्र में ) क्यों कहा है ? ( कारण क्ष का वर्णान्तर होकर, ह नहीं आता, तो अ का दीर्घस्वर नहीं होता है । उदा०- ) दक्खिणो ।
इ: स्वप्नादौ ॥ ४६ ॥
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स्वप्न इत्येवमादिषु आदेरस्य इत्वं भवति । सिविणो सिमिणो । आफैँ उकारोऽपि । सुमिणो । ईसि । वेडिसो । विलिअं । विक्षणं । मुइंगो । किविणो । उत्तिम । मिरिअं । दिण्णं । बहुलाधिकाराण्णत्वाभावे न भवति । दत्तं । देवदत्तो | स्वप्न । ईषत् । वेतस । व्यलीक । व्यजन । मृदङ्गा | कृपण । उत्तम । मरिच । दत्त । इत्यादि ।
स्वप्न इत्यादि प्रकार के शब्दों में, आदि अ का इ होता है । उदा०- - सिविणो, सिमिणो; आर्ण प्राकृत में (स्वप्न शब्द में आदि अ का ) उकार भी होता है । उदा० . सुमिणो ( अन्य उदाहरण :- ) ईसि दिण्णं । बहुल का (दत्त शब्द में वर्णान्तर से त्त के स्थान पर ) ण्ण नहीं आता, तो नहीं होता है । उदा - दत्तं देवदत्तो । ( इन शब्दों के मूल संस्कृत दत्त; इत्यादि ।
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स्वप्न
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पक्वाङगार ललाटे वा ॥ ४७ ॥
एष्वादेरत इत्वं वा भवति । पिक्कं पक्कं । इंगालो अंगारो । णिडालं डालं ।
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अधिकार होने से, आदि अ का इ )
शब्द ऐसे हैं :
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