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परन्तु स्वास्थ्यावस्था की कौन कहे, लोग बीमारी में भी पथ्य बराबर नहीं रखते हैं। पथ्य की सलाह देने वाला आज शत्र में गिना जाता है । रोगियों को आदेश करते समय विचारे वैधों को जिस भाव का सामना करना पड़ता है वह भगवान ही जानता है । यधपि रोगियों को उचित खुराक से वञ्चित रख कर बै. उस वस्तु का स्वय लाभ उठाने वा उपभोग करने की इच्छा तो परोक्ष रीति से भी नहीं करता है और न पथ्य नामक व्यवस्था जो आयुर्वेद में वर्णित हुई है, वह उन लिखने वाले महानुभावों ने कोई स्वार्थान्धपन से की है, फिर भी पथ्य के लिये जान बूझ कर आज भी उपेक्षा-लापरवाही-को जाती है, उससे सचमुच 'अपने पैर अपनी कुल्हाड़ी' वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है।
आजकलके पथ्यसे लोग भयभीत होगये हैं___ आयुर्वेद में इसकी खूब चर्चा रहने के कारण वर्तमान बीसवीं शताब्दि के मनुष्यों को प्रसन्न होना तो दूर रहा वरन् कितने ही-नहीं ! नहीं !! स्वयं आयुर्वेद के भक बने हुये लोग भी-पथ्य के नाम से क्लषित है, और इसी कारण आयुर्वेद द्वारा चिकित्सा कराने से उदासीन भी हैं। भलाई के स्थान बुराई वाली अवस्था हुई है। हम लोगों की ना समझी वा विचारपूर्वक ध्यान न देने के कारण अवस्था यहां तक पहुंची है, कि दूसरे चिकित्सा शास्त्र भी आयुर्वेद को अल्पज्ञता के कारणे में एक कारण इसे भी और-वह भी मुख्य गिनने लगे हैं; और अवसर प्राप्त होने पर अपने विचारों को दर्शाते हुये पथ्य को अोट में आयुर्वेद पर कटाक्ष करते हैं।
महानुभावों, ! पथ्य के नाम से आज जो घणा की जाती है, उसमें आयुर्वेद शास्त्र का कोई कुसूर नहीं है। वैधक में ऐसा
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