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( १२० )
रक्त विकार । (Skin Disease.)
(खाज, पांव, दाद, आदि) रक्त विकार की बीमारियों में नमक नहीं खाना चाहिये। अथवा सादे नमक के स्थान सैन्धव खाना चाहिये।
पथ्य प्रारम्भ में जो ‘साधारण पथ्य' बतलाया है उसी का पालन करना चाहिये।
स्वच्छता खूब रखनी चाहिये, कपड़े साफ़ पहिनने चाहिये । ताज़ी हवा में घूमने जाना चाहिये। गन्दे और बन्द मकान में न तो रहना चाहिये और न रात को सोना चाहिये। श्रौढ़ने बिछाने के कपड़े धूप में रोज़ रखे जाने चाहिये । सब से अलग भोजन करना चाहिये, खाने के, पीने के बर्तन भी अपने अलग रखने चाहिये । अरेठा, साबु, खारा, गंधक वा नीम के पानी से शरीर को दाद आदि स्थान को साफ़ रखना चाहिये। दस्त साफ आवे वैसा प्रयत्न रखा जावे । खटाई इन रोगों में नुकसान करती है। चंदलिये का साग लाभकारी है।
कृमि । (Worms.) पेट में कृमि हो जाने पर दस्त की दवा देनी चाहिये। बच्चों को अकसर यह बीमारी होती है और इसी से ज्वर, शूल, मंदाग्नि आदि की पीड़ाये अनेक वार होती है। मीठा, मैदा, चना, खांड सेवन नहीं करने चाहिये । पथ्य
अपथ्य जुलाब चावल
चना वथा
अजीर्ण में भोजन
मैदा
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