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( १४० ) वाली बीमारी है। बच्चों को बीमार से दूर रखना चाहिये, बीमार को स्वच्छ जगह में रखना चाहिये, जहाँ हवा आवे और जाचे पैसे कमरे में रखना चाहिये पर रोगो के बदन पर हवा का भोका नहीं लगना चाहिये। कमरे में बोमार के पास सेवा सुश्रुषा करने वाले के सिवाय दूसरे को नहीं जाना चाहिये। मकान में धूप-लोबान खेना चाहिये। नीम जलाना चाहिये । बीमार के उपयोग आये हुये कपड़े धुलवाने के बाद दूसरे काम में लाने चाहिये। शोतला न निकले इलके लिये चेचक का टीका लगाना बहुत लाभदायक है. ३४ महोने का बालक होने पर टोका लगवा लेना चाहिये, बड़ा होने पर लगवाने से से वह खाज करके टोके को बिगाड़ देता है अतः छोटो उन में ही लगाना श्रेष्ठ है टीका लगाये हुये को शीतला कम निकलती है। ठंड से रोगी को बचना चाहिये। युकलिपट स तेल वा कपूर वा तारबीन का तैल सूधना चाहिये।
अपथ्य लंघन
तेल
भारी अन्न चावल
क्रोध
पथ्य
रोटी
धूप
खट्टा वेग रोकना
बाजरी मोठ मंग करेला बने (व्रण भरीज जावें तब)
पानीउवाला हुआ।
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