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रहती है और बोमारी भयंकर हुई तो उसके बाद की कमजोरी भी बहुत दिनों तक रहती है। और कभी २ तो वह निर्मूल होती ही नहीं ।
बीमारी में जिस तरह अच्छी शुश्रूषा की आवश्यकता है, वैसी ही आवश्यकता उसके वाद की कमजोरी में भी है। परन्तु इस बात को सब मनुष्य नहीं जानते । श्रेष्ठ शुश्रूषा का जिन्हें अनुभव है वे जान सकते हैं । और बतला सकते हैं कि नर्स यदि अच्छा और दयामयी न हुई तो हजारों रोगी मर जायेंगे कितने ही रोगी जन्म भर के लिये पराधीन हो जायंगे और कितने जीवन से घबड़ा कर आत्महत्या करने में प्रवृत्त हो जायेंगे | बीमारी से बच कर प्राणों की रक्षा हो जाता और बात है और पहिले की भांति सशक्त और नीरोग होना दूसरी बात है । शक और नीरोग होना उत्तम शुश्रूषा के परिणाम मैं होता है । कभी २ तो नर्स के अच्छी शुश्रूषा करने पर उन बीमारों को भी फायदा पहुँच जाता है जिनके बारे में डाक्टर लोग हाथ समेट लिये होते हैं ।
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वेचार गरीबों को नर्स नहीं मिलती। उन्हें बीमारी से उठते ही कमजोरी की हालत में ही (जब कि शुश्रूषा की श्रावश्यकता मिट नहीं जाती) काम पर जाना पड़ता है। इससे उनकी बीमारी लौट आती हैं और उन्हें प्राण छोड़ने होते हैं। ऐसे आदमियों के घर में जाकर देखने से उनकी सच्ची स्थिति मालूम हो जाती है। घर में कमाने वाले श्रादमी के बीमार पड़े रहने से खाने पीने की भी दिक्कत रहती है। ऐसी हालत में नल कहाँ से पावें ? सारे घर वाले जिसके श्रधार पर हैं, उनके बीमार हो जाने से वह स्वयं वो सा मालूम होने लगता है। क्योंकि बीमारी काम में श्राने वाले कपड़े लत्ते, औषध, पथ्य आदि आवश्यक चीजें उसके सिवाय और
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