Book Title: Pathya
Author(s): Punamchand Tansukh Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शीत काल जीर्ण ज्वर ( १७३ ) पथ्य पित्त विकारकी शांति के लिये नेत्र विकार की शान्तिके लिये शक्ति बढ़ाने पौष्टिक raar (पाचन शक्ति अच्छी हो तो ) शोष यकृत रोग अतिसार बालक वृद्ध कफरोग श्राम अजीर्ण ज्वर मंदाग्नि पाण्डु उदर अपथ्य कांसी तथा ताम्र के पात्र में बहुत दिन रखा घृत बिगड़ जाता है । घृत का पालन - सेके मूंग, लहसुन, गर्म जल वा चने हैं 1 हींग, लौंग, मिरचकाली, इलायची जीरा, धनिया, श्रदरख, सोंठ, खटाई, सैन्धव भी पालन कर्त्ता चीजें हैं । घृत के अजीर्ण में नीबू, सोंठ, कोकम वा निंबोलीका सेवन करना चाहिये । माखन-गर्मी को कम करता है। गरमी की मौसिम में तरावट पहुंचाता है। क्षय के बीमार के लिये लाभदायक है । धातु, श्रोज, बल की वृद्धि करता है, क्रान्ति देता है, पुष्टि कर है अर्श, क्षय, रक्त विकार, अर्दित वायु, कास, नेत्ररोग में लाभदायक है। मेद बढ़ाता है । माखन के साथ शाक खाने की शास्त्र में मनाई लिखी है। For Private And Personal Use Only

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