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( १७५ )
नमक।
बहुत उपयोगी वस्तु है। इसके बिना कोई भी खाद्य स्वाद नहीं लगता है । रक्त विकार में इस का सेवन बन्द कर दिया जाता है पर इसके बिना अन्न नहीं भाता और उस मे कमजोरी होजाती है। शरीर को तन्दुरुस्त रखने के लिये नमक खाना जरूरी है अतः बिना खास जरूरत के नमक बन्द न करना चाहिये । अजीर्ण, पेटशूल में नमक लाभदायक है। नमकों में सैन्धव सब से अच्छा नमक माना गया है । साधारण अवस्था में जहां नमक बन्द करना हो वहां प्रतिनिधि रूप में सैन्धव का सेवन किया जासकता है। पारे की दवा लेने पर नमक का सेवन बन्द करना चाहिये । सूजन, तथा उदररोग में भी नमक हानि करता है अतः इसका सेवन तब न किया जावे। यह सूजन, उदररोग, जलोदर, खाज, नेत्ररोग, में अपथ्य है।
नमक अधिक सेवन से नेत्ररोग, प्यास, रक पित्त, कोढादि शरीर का दुर्बलपन होना, केश जल्दी सफेद होजाना आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
लालमिरच।
बहुत मिरचे खाने से खुशकी, रक्त विकार, प्रमेह, नेत्ररोग, अतिसार, मुंह के छाले, गुदा में जलन, धातु की निर्बलता,
आदि रोग होजाते हैं वा बढ़जाते हैं । अर्श में से खून आने, लगता है । लाल के स्थान काली मिरच बीमार को बहुत मुनाफिक लाती है । हरि मिरचे प्राचार के काम में आती हैं। पर बीमार को नहीं देना चाहिये।
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