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पथ्य
ज्वर
ज्वर निर्बलावस्था
उदर रोग
संग्रहणी
कफ
कास
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( १७१ )
अपथ्य
कमजोरी में
क्षय में बीमारी पित्त
नेत्र रोग
दूर
होने पर
खाज
मगज के रोग शिर पीड़ा जीर्ण ज्वर
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चोपड़ना ।
लोगों को बिना चोपड़े रोटी, रधीण, भाता नहीं है । यह रोज का अनुभव है कि रोगो रोज २ चोपड़ने के लिये श्राज्ञा मांगते हैं और कभी २ दबाव से भी श्राज्ञा चाहते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि कमजोरी घृत खाने से ही दूर होती है। पर बीमारी में घृत अधिक खाना बुरा है। इससे ग्राम पैदा हो जाती है, भूख कम हो जाती है, कास श्वास में मदद मिलती है, बुखार (चीगट से) पीछा आने लगता है, जुरबन्ध जाती है अतः बीमारी में घृत अधिक देना नहीं चाहिये । मोण में वा सीजती में बहुत से घृत डलाते हैं और ऐसा समझते हैं कि यह घृत अन्न के साथ मिला होने से नुकसान नहीं करता पर बात ऐसी नहीं है । इस प्रकार डाला हुआ घृत नाड़ियों को तो पचाना ही पड़ता है पर वे कमजोर होने से पचा नहीं