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( १९२ ) सकती। ऐसा नहीं कि आटे के धोखे में आटे के साथ घृत भी पच जावे और नाडियों को मेहनत घृत के स्थान प्राटे ही की करनी पड़े। पेट में घत और पाटा अलग २ होकर भिन्न २ रूप से पचता है अतः चाहे सीजती में घृत डालें, चाहें ऊपर से चोपडे, नाड़िये मज़बूत हो, अग्नि तेज हो तब तो पच जावेगा नहीं जब अवश्य नुकसान करेगा। शक्ति और उष्णता बढ़ाने के लिये चोपड़ने की ज़रूरत रहती है पर निर्बलावस्था में यह जल्दी पचता नहीं अतः शकि आने तक, भूख बराबर लगने तक नहीं चोपड़ना चाहिये, कम चोपड़ना चाहिये। घृत की कमी अन्न से किसी अंश में पूरित हो जाती है।
बीमारी में चोपड़ना ज़रूरी हो तो घृत को उबाल कर पापड़ तल के फिर वह घृत काम में लाना चाहिये । अथवा काली मिरच पीसी के साथ चोपड़ना चाहिये अथवा ऊपर काली मिरच चाब लेनी चाहिये । _सर्दी की ऋतु में उष्णता के लिये घृत का सेवन करना चाहिये । घृत के सेवन से गर्मी कम हो जाती है। पित्त शान्त हो जाती है। चोपड़े पर पानी पोलेने से खास हो जाती है। चोपड़े पर चने, पान वा पापड़ खाकर जल पीना चाहिये । क्षय में, शोष में, घत चोपड़ कर खाना चाहिये।
घृत । खाने में घृत ही का उपयोग करना चाहिये। ज्यादा सेवन करने से यह पचता नहीं है । श्राम हो जाती है ज्वर बढ़जाता है, उदर रोग, सूजन, मंदाग्नि संग्रहणी रोग बढ़ जाते हैं।
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