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की खुशामद करता है, घर के मनुष्यों से या स्नेही सम्बन्धियों से हठ करता है, रोया करता है । घर के मनुष्य वगैरः स्नेह से कहो या झुझलाने से कहो नर्स को हाथ पैर जोड़ कर वह चीज उसे खाने को दे देते हैं। परन्तु उनके इस कृत्य का भयंकर परिणाम निकलना बहुत सम्भव हैं। कभी २ ऐसा भी होता है कि बीमारी अच्छी हो जाने पर भी बीमार को बिलकुल भूख नहीं लगता। वह अन्न नहीं खा सकता। इससे उसमें शक्ति पाने में बड़ी देर लगती है। परन्तु जब तक आवहवा तब्दील करने की शक्ति उसमें न आ जाये तब तक नर्स को चाहिये कि उसे भारी भोजन न करावे और जो कुछ खिलाया जावे वह वक्त पर खिलाया जावे।
बीमारी के बाद की कमजोरी में कुपथ्य से ही हानि नहीं होती, बहुत दिनों से एक ही जगह पड़े रहने की वजह से बीमार को असूझन आई हुई होती है। इससे वह कुछ अच्छा होते ही ( अपनी शक्ति का विचार न कर ) जरूरत से ज्यादा घूमने फिरने लगता है, खुली हवा में बदन खोल कर बैठ जाता है, घटी गप्पं मारने लग जाता है, दिल बहलाने के लिये कोई अखबार या नाविल पढ़ने लगता है तो ४ चार घंटे पढ़ता ही जाता है । इससे उसका माथा दुखने लगता है। अशक मनुष्य को गरम कपड़े जरूर पहनने चाहिये, परन्तु वह पतली मलमल का कुर्ता पहन कर फिरने लगता है। इस तरह की नादानी का परिणाम यह होता है कि बीमार के शरीर में जल्दी
कि नहीं पातो, अशक्त रोगी को बच्चों की भांति संभालना पड़ता है। उसका शरीर और मन दोनों कमजोर हो गये होते है। जब तक ये दोनों ठोक रास्ते पर न पा जावें तब तक अपनी बुद्धि से नर्स को इन्हें संभालना चाहिये । वीमारी के हटते ही रोगी को स्वच्छ ताजी और विपुल हवा की और भी
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