Book Title: Pathya
Author(s): Punamchand Tansukh Vyas
Publisher: Mithalal Vyas

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Page 185
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६६ ) घृत से चोपड़ा भी जाता है पर कास में, तीव्र ज्वर में, नहीं चोपड़ना चाहिये । अतिसार में यह अधिक दिन तक लगातार सेवन न करना चाहिये । ताव कम हो जावे व गर्मी मालूम दे तो दूध के साथ वा घृत से चोपड़ कर देना चाहिये। बच्चे की मा को इसका सेवन ठण्ड में व वर्षा ऋतु में कराना चाहिये। बच्चे को जब सर्दी लग गई हो तब उसकी मा को घृत में राई तल कर और वह दलिये में मिला कर सेवन कराई जावे।। दलिया बहुत पौष्टिक नहीं है, अधिक नहीं खा लेना चाहिये न बहुत दिन तक सेवन करना चाहिये। यह बीमारी में हृदय को कमजोर नहीं होने देता है यही इसका महत्व का गुण है । बड़ियों के साथ यह स्वाद विशेष लगता है । यह बीमारों का पथ्य है। थूली। गेहूं की बनाई जाती है। कोई भी धान्य बारीक पीसा हुआ होने की अपेक्षा दला हुआ अधिक गुणवाला, जल्दी पचनेवाला तथा पौष्टिक गुणवाला होता है पर खाने का अन्दाज न होने से अधिक खा लिया जाता है और उससे पेट में भारीपन होजाता है और पचता भी देर से है। रोगी को उसकी खूराक के अनुसार इसका सेवन कराना अच्छा है । यह पथ्य कर खाद्य पदार्थ है । रोगो की रुचि सदा एक ही पथ्य पर नहीं रहतो अतः कभी कभी बदलना भी जरूरी होता है ।थूलो ऐसी अवस्था में प्रतिनिधि रूप में काम में लाई जा सकती है। ज्वर में चोपड़नी नहीं चाहिये । कम्जी दूर करती है । संग्रहणी में, मंदाग्नि में इसे न देना चाहिये। खिचड़ी से थूली अधिक ताकतवर है। For Private And Personal Use Only

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