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( १६५ )
पटोलिया। गेहूं के आटे का बनाया जाता है । जल्दी पचता है। अतिसार में नहीं देना चाहिये। मीठा भी दिया जाता है पर कफ में, कास में, तथा अत्यन्त निर्बलावस्था में मीठा नुकसान पहुंचाता है। कण्ठ में जब कुछ नहीं उतरता है वा जीभ पर छाले हो जाते हैं तब पटोलिया दिया जाता है।
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दाल। पथ्य में मूंग की दाल दी जाती है, ज्वर में मोठ की दाल भी देते हैं । दाल पतली तथा काठी दोनों प्रकार की होती है पर लंघन के पश्चात तथा भयङ्कर अवस्था में पतली ही देते हैं । पतली सहज में पी ली जाती है। चने की दाल बादी करती है, दस्त ले आती है, पेट में किसी २ के दर्द भी हो जाता है, पचती भी देर से है अतः पेट में विकार हो, मन्दाग्नि हो उसे चने की दाल नहीं खानी चाहिये। लोग और सोडे के साथ इच्छा की पूर्ति के लिये थोड़ी खाई जा सकती है। दाल में घृत कम डालना चाहिये, रुचि अनुसार थोड़ा गर्म मसाल:-~-पित्त के विकार में छोड़ कर-डालना चाहिये, हींग का बगार देना भी अच्छा है।
सब प्रकार की दालें कांजी, कोकम, नीवू तथा सोडे से जल्दी पचती है।
दलिया। बाजरी का मूंग की दाल के साथ बनाया जाता है, पतला पतला देते हैं । ज्वर में यह पथ्य उपयोगी समझा जाता है।
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