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होती है। रोटे का गिर हलका होता है, जल्दी पचता भी है पर ज्यादा न खाया जावे तो।
पुड़ो-देर से पचती है । बीमारी में नहीं देनी चाहिये। गर्मी करती है । स्वास्थावस्थामें रोज खाने से अग्निमंद हो जाती है गर्मी करती है। ज्वर आदि बीमारिये पैदा हो जाने की अशंका हो जाती है। बीमार रोज ले तो जरूर उसे भुगतना पड़ता है । इससे आम हो जाती है । मंदाग्नि, संग्रहणी, उदर, शोथ, पाण्डु, अर्श, ज्वर में यह अपथ्य है।
सोगरा-देर से पचता है, गर्मी करता है, रोटो की अपेक्षा ज्यादा खाया जाता है।
खाखरा-स्वाद के लिये अथवा रुचि उत्पन्न करने के लिये इसका सेवन किया जाताहै थोड़ा और कभी रुचि उत्पन्न करने के लिये ज्वर में दिया जाय तो उतनी हानि नहीं । हानि को अपेक्षा लाभ विशेष होता है पर स्वाद से ज्यादा खा लिया जाता है अतः इसका ध्यान रखें। कास हो तो थोड़ो हलदी मिला लेनी चाहिये । अजवायन डालना लाभ कारी है।
बेसण को रोटो-अरुचिमे तथा मुंह के जायके को सुधारने के लिये ज्वरावस्था में कभो २ देते हैं पर देर से पचतो है। निर्बलावस्था में कभी किसी दिन थोड़ी मात्रा में देनी वैसी हानि कर नहीं । मंदाग्नि में नहीं देनी चाहिये। मिसी रोटी-बीमार के लिये उपयोगी नहीं।
बेडा रोटो-बीमार के लिये उपयोगो नहीं बहुत देर से पचतो है, पेट में विकार पैदा करती है।
खाजा-बीमार के लिये उपयोगो नहीं । ज्वर, भंदाग्नि अतिसार संग्रहणी, अर्श, कास आदि सभी रोगों में अहित कर
चीलड़ा
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