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( १५६ )
मोठ।
ज्वर में इसकी दाल ( मोठ का पानी) पथ्य के रूप में उपयोग की जाती है। निकाला जब बिगड़ जाता है तब इसका उवाला पानी देते हैं । कब्जी करता है, अल्प बल कारक है।
अपथ्य वादी के रोग
पथ्य कफ के रोगों में पित्त के रोगों में ज्वर रक्तपित्त दाह कृमि क्षय उन्माद
चवला।
वायु करता है। यह पथ्य के रूप में उपयोग नहीं किया जाता । इसके चीलड़े, बड़े बेड़ारोटो बनाकर खाते हैं पर बीमार के लिये हित कर नहीं । बीमारी दूर हो जाने के बाद भी निर्बलावस्था में इसका सेवन नहीं करना चाहिये । स्वाद से इसके खाद्य पदार्थ अधिक खा लिये जाते हैं जो नुकसान करते हैं। यह दर से पचने वाला, वायु करता, धान्य है। इस से पेट में दर्द भी होने लगता है।
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