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( १४६ ) कौन लावे? ऐसे आदमी दैवयोग से अच्छे भी हो गये तो बिलकुल नीरोग और शसक नहीं हो पाते । उनकी बीमारी पलटती है और अन्त में उसी बीमारी में उनका देहान्त हो जाता है यदि धनवान मनुष्य गरीबों के लिये हवा. तबदीली के लिये तथा अन्यान्य बातो का सुभीता कर देंगे तो बहुत सी असाध्य बीमारियाँ अच्छी हो जायंगी।
-शुश्रुषा से उद्धृत।
दूध । बीमार के लिये दूध का पथ्य 'अमृत' है । यह जल्दी पचता है, शक्ति बढ़ाता है और प्रकृति को रोग दूर करने में मदद देता है। बीमारो में अन्य खाद्य पदार्थ नहीं पचते, परन्तु दृध हलका होने से शीघ्र पच जाता है और शक्ति भी अधिक बढ़ाता है। रोग और पीड़ा के कारण वीमा कमजोर होता जाता है, उसकी जीवनी शक्ति घटती जाती है उसे रोकने के लिये दूध ही एक ऐसा पथ्य है जो आश्चर्य जनक गुण करता है । दृध प्रायः सभी अवस्थाओं में लाभकारी है, रोग की तीवावस्था तथा जीर्णावस्था में दोनों समय एक सा लाभदायक है। दध का आत्मीकरण (अङ्ग लगना) भी अन्य खान पदार्थों की अपेक्षा अधिक होता है। ज्वर में उपरणता बढ़ती है जो खाद्य पदार्थों से उत्पन्न होती है अतः उपरणता उत्पन्न होना बन्द करने के लिये ज्वर में लंघन करने का विधान है, परन्तु दृध से अन्न की अपेक्षा बहुत कम उष्णता पैदा होता है अतः ज्वर में दूध का उपयोग करना जरूरी और हितकर है। पथ्य में गाय का दूध ही देना चाहिये, बकरी का दृध क्षय में, जीर्ण ज्वर में, अतिसार में, प्रवाहिका में, कास में तथा बालकों को देना
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