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( १४७ ) अच्छा है पर इन रोगों में गाय का दूध भी श्रेष्ठ है । भैंस का दूध भारी है, देर से पचता है, इस लिये बीमारी में देना ठीक नहीं। तन्दुरुस्त हालत में ताकत के लिये भैस का दूध अच्छा है। गाय का दूध भी ताकत के लिये अच्छा है। दूध स्वस्थ्य गाय का लेना चाहिये। बोमार तथा कमजोर गाय का दूध लाभ के स्थान हानि पहुंचाता है, उसमें अनेक प्रकार के रोगोत्पादक परिमाणु रहते हैं, वह पोषण भो ठोक नहीं करता। दूध में कीटाणुं बहुत जल्दी पैदा हो जाते हैं और उनकी वृद्धि भी तुरन्त और बहुत अधिक होती है अतः विना गर्म किये दूध को पोना बहुत हानिकर है। दूध को खूला रखने से कीटाणं ज्यादा पैदा होते हैं अतः दूध को सदा ढके रखना चाहिये। संक्रामक रोग ( हैजा अतिसार आदि ) फैले हुये हों उस समय खास सम्हाल रखनी चाहिये। बाजार में बिकने वाला दूध पथ्य के काम का नहीं। उसमें मैला पानी, रोगोत्पादक जंतु, फूल, गोवर, मैल आदि के साथ, सुबह शाम का मेल किया, गाय बकरी भेल का परस्पर मिलाया हुआ होता है जो बीमार को हानि पहुंचाने के अतिरिक्त लाभ कम पहुचाता है। दृध बीमार के लिये गाय का रूबरू दुहा होना चाहिये, तभी उसका लाभ उसे मिलेगा। संक्रामक रोग फैला हुआ हो, हैजा श्रादि-उस समय बाजार का दूध नहीं पीना चाहिये और विना अच्छी तरह उबाले कभी नहीं पीना चाहिये। दूध को बहुत गाढ़ा नहीं करना चाहिये, गाढ़ा करने से दूध के कई उपयोगी तत्व नष्ट हो जाने हैं, वह पचता भी देर से है। स्वाद पतला दूध नहीं लगता है इससे लोग गाढ़ा दूध पीते हैं पर उससे तन्दुरुस्त हालत में भी लाभ नहीं पहुचता है । बीमार के लिये दृध एक अच्छा ‘उवाला' आने पर उतार
सय करपयः । यो बलकरी पय"
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