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( १५४ )
अवस्था में तथा पाचन शक्ति कमजोर हो तब चोपड़ना नहीं चाहिये । ज्वर, कास, कफ में भी घृत नहीं लगाना चाहिये | गेहूं का आटा बहुत बारीक नहीं पीसाना चाहिये, न बहुत बारीक चारनी में छान कर बहुत धुला ही निकाल देना चाहिये । थले मैं पोष्टिक तत्व विशेष है जो बहुत उपयोगी है। कुब्जी वाले के लिये तो थला श्रांटे में रहना बहुत ज़रूरी है, इससे दस्त साफ़ श्राती है। रोटी से थली ताकत वर है पर वह भूख से ज्यादा खाली जाती है, अन्दाज नहीं रहता । पटोलिये से भारी अंगार वाटिया उससे रोटी, रोटी से बाटिया (जाड़ी रोटी) और सव से भारी रोटा होता है जो देर से पचता है। सर्दी में अन्य ताकत की दवाओं से भी बढ़ कर लापसी फ़ायदा करती है। कई दिन खानी चाहिये। गेहूं का गाल (सत) ठण्डा पौष्टिक होता है ग्रीष्म में लाभकारी है। ठण्डाई में काटे गेहूं का सत डालते हैं, पौएिक है।
पथ्य
सभी रोगों में (कम लेना) पाचन शक्ति ठोक हो तो
चोपड़ कर खाना |
काल में, कफ में, श्वास में, ज्वर में चोपड़ कर नहीं खाना चाहिये |
बात व्याधि |
संग्रहणी
अतिलार
प्रमेह
अपथ्य
सोडा मिला कर सेवन करने से जल्दी पचता है। गेहूं में
१७ भाग थूला रहता है ।
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