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बिना सख्त जरूरत के चारपाई पर से भी बीमारी में नहीं उठना चाहिये।
(२७) थकावट मालूम हो वैसा परिश्रम नहीं करना चाहिये। (१८) कमरा गर्म रखना चाहिये । (१६) रात को बहुत देर तक नहीं जागते रहना चाहिये।
(२०) रोगी के काम में आये हुए द्रव्य, कपड़े, धूप में रखे जावे अथवा गर्म जल में उबाल लिये जावें।
(२१) रोगी के काम में आये हुए वरतन अग्नि से तपा कर वा गर्म जल से धोकर काम में लाने चाहिये।
(२२) अंधियारे, विन हवावाले मकान में न तो रोगी को रखना चाहिये और न स्वस्थ पुरुष को ही रहना चाहिये ! (२३) बीमार के कपड़े रोज बदल देना चाहिये ।
२४) रोगी के मलमूत्र, कफ, थूक, आदि को बहुत दूर फेंकना चाहिये।
(२५) चाहं जहां थूकना नहीं चाहिये । इससे रोग फैलने में सहायता मिलती है। योमार के थूक-कफ में बीमारी के जीव होते हैं अतः उगलदान में तनाशक दवाओं का जल फिनाइल आदि रखना चाहिये और उसे दूर फेकना चाहिये।
(२६) बीमार होते ही-सर्दी लगने का अनुमान होते ही तुरन्त इलाज का प्रबन्ध करना चाहिये । समय विचार में वा लापरवाह में वृथा नहीं गवांना चाहिये।।
(२७) बीमार होने के साथ ही योग्य प्रवन्ध तथा इलाज कराया जावे तो रोगी सहज में ही आराम हो सकता है ।
(२८) जिस कमरे में बीमार सोता है उसमें सेवा सुश्रषा करने वाले के अतिरिक कोई नहीं सोना चाहिये सेवा सुश्रपा
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