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( १३६ ) करनेवाले को भी चाहिये कि वह लगातार वहां बैठा न रहे किन्तु बीच बीच में बाहर टहल भी आवे।
(२६) रोगी के कमरे में हवा आती रहे । इससे हित होता है, पर हवा का झोका रोगी के बदन पर नहीं लगना चाहिये तथा वाहर ले खराव हवा भीतर न आवे इसका ध्यान भी रखना चाहिये।
(३०) जुखाम होते ही छाती पर तारपीन का तेल थोड़ा कपूर मिला कर सेक देना चाहिये।
३१) रूमाल पर युकलेपटिस नैल छिड़क कर रोज संघना चाहिये।
३२. तुलसी के पत्तों की चाह रोज लेनी चाहिये । (३३) अमरसुन्दरी गुटो का सेवन रोज करना चाहिये, इससे आक्रमण का भय कम हो जाता है।
३४) बीमार होने पर जल गर्म किया हुआ सेवन किया जाये।
३५) एक सेर जल में पोटास परमेगनाट रत्ती भर मिला कर प्रतिदिन कुल्ले किये जावें । नाक भी भीतर से धोया जावे । यह रोग प्रतिवन्ध साधन है।
३६) युकलेटिस नेल संघना, कुल्ले नमक वा पोटाल पारमंगनाट के करना, इन्हीं से नस्य लेना, तुलसी वा दालचीनी की चाह सेवन करना आदि से इस रोग के होने का भय बहुत कम हो जाता है।
शीतला।
Smal Ipox.) बड़ी भयानक बीमारी है, इससे बीमारी के समय अत्यन्त कष्ट पहुंचने के सिवाय चेहरा सदा के लिये कुरूप हो जाता है, किसी किसी के नेत्रों में फूली भी पड़ जाती है अतः इस रोग में विशेष सावधानी रखनी चाहिये । यह अत्यन्त मृत
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