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( ४८ ) (१४) भोजन शान्ति पूर्वक करना चाहिये ।
(१५) भोजन करने बैठे तब हाथ पैर को खूब साफ धोना चाहिये । बिना हाथ पैर धोये भोजन पर बैठ जाने से कितने ही रोगकारी परिमाणु भोजन के साथ पेट में हाथ पर से चले जाते है और उनसे कितने ही संक्रामक रोग पैदा हो जाते हैं।
(१६) भोजन में विरुद्ध आहार नहीं होना चाहिये । दही दूध, रायता खोर, अचार खीर, अचार दूध, गट्टे खीर, कढ़ी दूध श्रादि साथ २ सेवन न किये जायें। लोग स्वाद के कारण खट्टे मीठे तथा एक दूसरे से विरुद्ध वाले पदार्थ साथ मिल कर खा जाते हैं पर वे एक प्रकार का रोगोत्पादक विष पैदा करते जो अचानक तीव्र रोग पैदा कर शरीर को जोखिम में डाल देते हैं अतः थाली में जो वस्तु आवे वही खाना जरूरी है यह नहीं, किन्तु जो लाभकारी हो वही सेवन की जावे।
(३७) भोजन में पहिले भारी अर्थात् मीठाई, खोर, ग्धीण, आदि और फिर हलकी चीजें खावें। फल भोजन के पहिले खाना चाहिये । केला ककड़ी मूला, दाड़म, भोजन के बाद खावें । अरवी, भीडी आदि ___ (१८) सर्दी की मौसिम में यदि दाडम वगैर खाने की इच्छा हो तो धूप में बैठ कर खानी चाहिये और उन पर ठण्ढा पानी न पीकर गर्म पीना चाहिये जिससे ठण्ड न लगने
पावे।
(१६) भोजन के बीचमें थोड़ार जल पीना चाहिये। भोजन के बाद पानी पीना खराब है कई लोग भोजन के बाद डकल २ पानी पी जाते हैं पर उससे अन्न देर से पचता है।
(२०) भोजन के समय पानी थोड़ा पीना चाहिये।
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