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( ११२ ) खांड़ (Sugar) श्राटा-मेदा (Starch) स्निग्ध पदार्थ-घृत तैल (चर्बी fat) बहुत करके यकृत की क्रिया-पित्त-से पाचन होते हैं पर यकृत में किसी प्रकार का विकार पैदा हो जाने से पाचन क्रिया सुस्त हो जाती है और उपरोक खाये पदार्थ बराबर पाचन नहीं होते हैं और यकृत का सुधार होने के स्थान अधिक
और अधिक बिगाड़ होता जाता है अतः यकृत की बीमारियों में यकृत को आरामी देनी चाहिये, यह आरामी उपरोक पदार्थों के न सेवन करने से ही मिल सकती है। यकृत की बीमारी में ऐसा पथ्य हो जो बिना यकृत की क्रिया के भी पच जावे। ऐसे पथ्य में दूध सब से श्रेष्ठ है। अवस्था में सुधार होने पर धोरे २ थोड़ी मात्रा से प्रारम्भ करके अन्य पदार्थ भी दिये जा सकते हैं। पथ्य थोड़ा २ दिया जावे यदि जरूरत हो तो दिन में कई बार दे दिया जावे पर एक बार में ही बहुत न दिया जावे ४५ घण्टे बाद थोड़ा २ पथ्य दिया जावे। अकेला दूध कई दिन तक लेने पर रोगो को अरुचि हो जाती है अतः प्रारम्भ में कुछ दिन दूध देकर फिर पतला और हलका पथ्य दिया जावे और ज्यो २ भूख बढ़े त्यो २ पथ्य बढ़ाया जावे। जिसे यकृत की बीमारी हो उसे मलेरिया ग्रस्त देश छोड़कर अन्यत्र स्वस्थ्यप्रद स्थान में चले जाना चाहिये। हमेशा व्यायाम करना चाहिये । व्यायाम भी ऐसा हो जिसमें पेट और श्वांस की क्रिया में प्रभाव पड़े। पैर द्वारा घूमने से अभीष्ट सिद्ध नहीं होता अतः घोड़े की सवारी तथा प्राणायाम करना विशेष श्रेष्ठ है। जमनाष्टिक तथा अङ्ग मर्दन की कसरत भी लाभदायक है।
पुरानी बीमारी में जल वायु बदलना चाहिये। समुद्र किनारे की हवा इसमें लाभदायक है, शहर वालों को गाँवों में कुछ दिन जा बसने से भी लाभ पहुंचता है। स्नान करते रहना
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