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(८० )
सन्निपात ज्वर । तीन अवस्था में पथ्य की ओर ध्यान दवा की भांति बराबर रखना चाहिये।
रोग कुछ कम हो तथा उपद्रव घट जावे तब पथ्य की सखी कुछ घटा देनी चाहिये।
लंघन कराना चाहिये। पर कभी २ दृध लंघन में भी शक्ति बनाये रखने के लिये दिया जाता है।
ठण्डा जल, कफ कारी वस्तुये, मिठाई, घृत इसमें भूल से भी प्रत्यक्ष में वा अप्रत्यक्ष में न देने चाहिये।
सन्निपात दूर हो जावे तब सर्व ज्वर में कहा पथ्य देना चाहिये।
अपथ्य लंघन ( उपद्रव के चिह्न उपद्गव के समय अन्न दूर हो तब तक-पर यदि देना, ठण्डी चीज़े देना, निर्बलता अधिक हो तो मिठाई थोड़ी भी देना, कम समय तक)
श्लेश्यकारी वस्तुयें देना, हरे दूध (दूध का विकार फूटस खाना, सूखे फटस दूर करने वाली तथा खाना पाचन औषधे मिला कर मिश्री थोड़ा २-देखो 'दूध') ( उपद्रव कम हो जाने दाल का पानी (उपद्रव पर भी घृत, मिठाई, कफकम होजाने पर)
कारी चीजे, भर पेट अन्न रोटी (उपद्रव दूर हो नहीं देना चाहिये।) जावे तब)
पथ्य
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