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( तृषा की शान्ति के लिये, पित्त ज्वर में, पर संघातिक ज्वर में, तथा मियादी बुखार में नहीं।
सोडावाटर-वमन व तृषा के उपद्रव में।
लेमनेड-पित्त ज्वर तृषा व वमन में। पर निकासा तथा सन्निपात में नहीं।
पानी थोड़ा२ बार बार पीना चाहिये। यदि अधिक तृषा होतो एक बार बहुत सा पिला देना चाहिये जिस से तृप्ति हो जायेगी
और तृषा भी शान्त हो जावेगी अथवा वह पीछा निकल पावेगा और उल्टी के विकार को भी अपने साथ निकाल देगा । ऐसी भवस्था में ठण्डा जल ही देना चाहिये। खटाई देनी ज़रूरी हो तो
आचार, आंवला, नीबू वा आलूबुखारे की खटाई दी जावे। दही की खटाई भी दी जा सकती है।
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