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( ५७ ) का कारण लमझ कर उन्हें लंघन करने का तथा पथ्य रखने का उपदेश देते हैं जिससे उनके पेट की सड़ांद दूर होकर कोठा-आमाशय साफ हो जाये । पर इस प्रकार की सादी औषधिय देने वा इलाज बतलाने से वे कहा करते हैं कि "खर्च पड़ जाय तो कोई परवाह नहीं है, परन्तु मुझे कोई बढ़िया, कीमती, अकसीर दवा वा भस्म आदि दोजिये, खर्च के वास्ते विचार न करिय. परन्तु मेरा रोग एक दो दिन में शान्त हो जावे ऐसा करिये, साथ ही साथ खूराक भी जारी रहे ऐसी दवा दीजिय, मुझसे लंघन नहीं हो सकता न पथ्य ही रखा जा सकता है" । विचारे अपने रोग का मूल कारण नहीं समझते इससे वे यदि ऐला कहें तो इसमें कोई अनोखी बात नहीं है । तन्दुरुस्त रहने के इच्छुक लोगों को यह सदा स्मरण रखना चाहिये कि प्रथम तो रोग का मूल कारण हूँढ कर उसे दूर करने का यत्न करना चाहिये फिर रोग को शान्त करने के उपायों की योजना करनी चाहिये । रोग दूर करने का सब से बढ़िया यही मार्ग है। केवल दवाओं से ही रोग दूर करने का विश्वास रखना गलत है क्योंकि बहुत दवायं खाने से फायदा होता नहीं देखा गया किन्तु उल्टा नुकसान ही पहुंचता है।
भोजन में होडाहोड (देखा देखो) करने से भी हानि होतो है । अमुक दो लड्डू खाता है तो मैं तीन खा सकता हूं, तुम एक रोटी लो तो मैं दो लू, जो तुम एक लडडू लो तो मैं भी एक लड्डू ले लू, इस प्रकार देखा देखो से लोग अधिक भोजन करके अपने आमाशय को बिगाड़ कर जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं ? फिर अजीर्ण, उल्टी, दस्त, आदि से पीड़ित होते हैं पर प्रारम्भमें इसका विचार नहीं रखते और भोजन करते समय स्वाद के वशीभूत होकर होडा होड करके अधिक स्त्राना खा जाते हैं। लोगों को इस बात का विचार करना
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