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( पू.) चाहिये कि होडाहोउ द्वारा वे क्यों बिना जरूरत अन्न को बरबाद करते हैं और स्वयं पीड़ित भी होते हैं ? होडाहोडी से अधिक खाना मानो पेट में अन्न के रूप में विष पहुंचाना है, यह तो अपने ही हाथ से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। यदि अन्न को कहीं गीली जगह में दो चार दिन रखें तो उसमें सड़ांद-दुर्गन्ध उत्पन्न होकर बदबू निकले बिना नहीं रहती है, उसी प्रकार आमाशय में अधिक डाला हुआ भोजन भी पचता नहीं किन्तु बातों में सड़ने लगता है और उससे बदबू, खट्टापन, उल्टी, डकार आदि जो मालूम होती है वह एक प्रकार मनुष्य को सावधान करती है कि भाइयो ! होशियार हो जावो! तुम्हारे पेट में सड़न पैदा होगई है और यदि योग्य प्रतीकार नहीं किया गया तो परिणाम अशुभ होगा। पर तो भी लोग बिना समझे अजीई में खाना खाकर और भी अधिक सड़ांद पैदा करते हैं। . खाने में अति आग्रह-यह भो शरीर को हानि पहुंचाता है। मेरी सौगन्ध, तुम्हारी सौगन्ध, मेरे अाग्रह से इतना
और खाइये, मेरी मनवार से लीजिये, मैं तो मनवार करने अव ही आया हूं, मेरी मनवार भी नहीं लोगे? क्या मुझ से नाराज़ हो? आदि २ 'अपणायत' और प्रेमकी बाते जीम लेने के पश्चात करके, जीमनेवाले पर दवाव डालकर कुछ
और खा लेने के लिये लाचार करना किसी रूप में भी उचित नहीं, लोग अधिक खाने से अानन्द समझ कर, खानेवाले को अधिक परोसदेते हैं और विचारे खाने वाले अनिच्छा होने पर भी नाराज़गी के डर से अधिक परोसा हुआ खा कर अपने पेट को बिगाड़ते हैं । मनवार ! करनेवालों को यह समझना चाहिये कि वे मनवार द्वारा दूसरों पर प्रेम प्रगट करने हैं पर परोक्ष में उससे दूसरों को हानि पहुँचती है। अतः यह
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