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( 48 ) प्रेम नहीं किन्तु एक प्रकार का शत्रुत्व है, अस्तु भोजन में अति आग्रह करके विशेष खिलाने की ज़रूरत नहीं है, न अच्छापन ही है। कितने ही लोग मनवार ही से भर पेट खाते हैं और जो मनवार उनकी जिमानेवाला न करे तो बुरा समझते हैं इसलिये कहीं २ ज़बरदस्ती मनवार करनी पड़ती है। पर यह रिवाज़ बुरा है।
नास्ता (जल-पान) भी हानिकर है आजकल नास्ता भी मनुष्य के श्रआमाशय को बिगाड़नेवाला एक बड़ा साधन हो चला है। अच्छी तरह खाये हुये हों और पेट में जगह न हों तो भी जल-पान करने का अवसर उपस्थित हो जाता है । जहाँ दो दोस्त इकट्ठे हुये कि नास्ता ( ब्लाटीङ्ग पार्टी ) करने की चर्चा छिड़ जाती है और नास्ता किया जाता है, पर यह बड़ी भूल है जिमका ख्याल नहीं किया जाता है । पहिले तो जितना मिल जाय उतना ही पेट में डालने को तैयार होजाते हैं और पीछे यदि उनको अजीरा वा उल्टोत्रादि हो तो दवा लेने दौड़ते हैं पर अजीर्ण तथा उल्टी तो केवल जल पान के उस ज़हर को बाहर निकालने के प्रयास मात्र है जिसे वे सहज में समझ नहीं सकते।
देखा देखो इससे भी शरीर को हानि पहुँचती है । पड़ोसी के यहाँ घेवर बने हैं तो अपने घर में भी वही बनने चाहिये, चाहे बालक बीमार ही क्यों न हो, चाहे अजीर्ण ही क्यों न हो रहा हो, परन्तु पड़ौसी के जो बना है वही अपने यहाँ भी बनना चाहिये । नहीं तो परस्पर व्यवहार में खामीभावेगी, कमी पड़ेगी
और लोभी भी समझ जावेंगे । ये सब बुरे ख़याल हैं जो लव त्याग देने के योग्य है । देखा देखी ले कई हानिये होती है जिसकी समझ तत्काल भले ही न पड़े परन्तु अधिक समय बाद उससे शरीर तथा पेशे, दोनों को नुकसान अवश्य पहुँचता है।
खान पान से
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