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( ५४ ) नहीं देती है, शनि घटती जाती है और शरीरिक तौल Weight भी घट जाता है। अधिक सोने से मेद बढ़ती है।
(५५) नियमित भोजन करने से दीर्घ जीवन प्राप्त होता है । (५६) बहुत से लोगों का ख़याल है कि पुष्टि-कारक पदार्थों के अधिक व्यवहार से ही अधिक बल होता है किन्तु पुष्टिकारक पदाथों को सेवन कर अच्छी तरह हज़म नहीं कर सकते उनके लिये वह भोजन विष का काम करता है।
(५७) जो लोग अच्छी तरह अग्नि चेतन न होने पर लालसावश अजीर्ण ही में भोजन करते हैं वे अग्निमांध, अम्लपित्त, शूल, प्रमेह आदि रोगों के द्वार होकर अकाल मरण का मुंह देखते हैं।
(५८) खान पान के बिगाड़
भिन्न २ प्रकार के स्वादिष्ट पदाथ तथा मिठाइयों को सेवन करने की रुचि आजकल लोगों की बहुत हो गई है । अन्य सुधारों की भाँति भोजन की तैयारी में भी अनेक प्रकार के सुधार (?) होते जा रहे हैं पर इन सुधारों की कृपा से सैकड़ों प्रकार के स्वादिष्ट किन्तु अप्राकृतिक पदार्थ बनने लगे हैं जो स्वाद के रूप में धीरे २ विष का सा असर करते हैं। सौम्य खाद्य पदार्थों के स्थान आज तामसी खान पानों का प्रचार बढ़ रहा है। आज जो रसोइयाधुंआधोर-चरपराहट और तमतमाहट वाले शाक बनाता है तथा कई प्रकार के स्वादिष्ट पक्वान्न बनाना जानता है वह हुशियारों में गिना जाता है, उसकी सब जगह प्रतिष्ठा होती है, उसकी घर २ चाहना रहती है, उग्ने अपने यहाँ रखने और उसका बनाया भोजन करने के लिये सभी इच्छुक रहते हैं, परन्तु कोई इस बात का विचार नहीं करता कि ऐसे स्वादिष्ट किन्तु अशकृतिक पदार्थो से शरीर को क्या लाभ और क्या हानि पहुँचती है ? लोगों ने स्वाद ही को गुण मान
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