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(६७) पथ्यके लाभ और उसके पालन करनेकी आदत बचपनमें ही डालनी चाहिये।
(६८) यदि हम वैधक ज्ञान नहीं रखते हैं तो किसीभी बीमारको पथ्यके सम्बन्धमें हमें कभी कुछ भी सलाह न देनी चाहिये।
(६६) खानेपीनेके सम्बन्ध रोगीपर कभी ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिये।
(७० ) एक अकेले खानपानको ही पथ्य कुपथ्य नहीं कहते हैं किन्तु उसके साथही रहनसहनका भी समावेश आजाता है।
(७१) पथ्यमें आहार और बिहार. दोनोंकी गणना समझनी चाहिये।
{ ७२ ) बीमारीमें घरवालोंकी सबसे अधिक सेवा सुश्रूषा इसीमैं समझनी चाहिये कि वे रोगीको कुपथ्यसे बचाये रखें।
(७३ ) पथ्य रखनेवाला कोई दुसरेका उपकार नहीं करता है, किन्तु स्वयं ही उसका लाभ उठाता है।
(७४) पथ्यापथ्य जाननेके लिये आयुर्वेदका आरोग्यशास्त्र देखना चाहिये।
(1) ईश्वरसे प्रतिदिन प्रार्थना करनी चाहिये कि वह हमें कुपथ्यसे दूर रहनेकी शुद्ध बुद्धि प्रदान करे ।
पथ्य की शास्त्रीय प्रशंसा। पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषध निषेवणैः । प्रथ्येऽसति गदार्तस्य कि मौषध निषेवणः ॥
लोलिम्बराज, वैद्यजीवन।
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