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रोगो सोता होतो उसे पथ्य का समय समझ कर जगाया न जावे न रोगो की इच्छा विना जबरदस्ती दिया ही जावे।
पथ्य नियत परिमाण में दिया जावेपथ्य नियत परिमाण में हो देना चाहिये । वैध, रोगी की अवस्था विचार के पथ्य को मात्रा निश्चित करता है । इसके लिये उसकी पाचन शक्ति, जोवन शक्ति का हास, शक्ति बनाये रखने की आवश्यकता और रोग आदि कई एक विषयों पर विचार किया जाता है । अतः वैध जितना खाने को बतलावे उतना हो दिया जावे । कभी कम और कभी ज्यादा (बिना सूक्ष्म विचार किये) पथ्य देना गोगो के लिये सदा लाभकारी नहीं। कभी स्वाद से वा अन्य किसी कारण से रोगो खातो अधिक जाता है परन्तु वह पचता नहीं जिससे रोग दूर करने में उल्टो बाधा होती है। कई रोगों में अधिक पथ्य खास तौर पर हाईन भी करता है अस्तु कठिन रोगों में इसका ध्यान बराबर रखा जावे । साधारण अवस्था में तौल कर पथ्य देने की व्यवस्था होनी सहज नहीं अतः पथ्य देने वाले को ही इसका अन्दाज रखना चाहिये कि रोगो जरूरत से अधिक स्वाद के वशीभूत होकर न स्वा जावे । रोगो को कम खाने के लिये नादिरशाही हुक्म देना वा ज्यादती करना, धमकाना ठीक नहीं किन्तु युक्ति से उसे समझा कर अधिक खाने से बचाना चाहिये। पथ्य के समय रोगी का चित्त शान्त रहे वैसा उद्योग हो
पथ्य के समय रोगो का चित्त शान्त रहे इसका खास प्रवन्ध किया जाये । उसके पास पथ्य के समय किसी प्रकार
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