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व्यवस्था की जावे । पथ्य स्वादिष्ट बना हुआ है कि नहीं, उसमें नमक ज्यादा तो नहीं पड़ गया है इसकी जांच पड़ताल रोगी के पास पथ्य ले जाने के पहिले ही कर ली जावे। रोगी जब बिना स्वाद का वा कुछ खामी वाला पथ्य देखता है तो वह बीमारी से हृदय कमजोर होने के कारण बहुत दुःखित होता है, पथ्य बनाने वाले पर तथा लाने वाले पर उसे बड़ा क्रोध श्राता है पर नवीन तैयार कर और लाने की आशा देने का साहस न कर वा मन को काबू में न रख कर क्रोध के श्रावेश में पथ्य ही नहीं लेता वा ज़बरदस्ती बिना मन-दुःख मानता हुअा-लेता है जो लाभ नहीं करता है। उसका चित्त अशान्त हो जाने के कारण वह पथ्य के अहार विहार सम्बन्धी अन्य नियमों की ओर भी परवाह नहीं रखता जिससे वोमारो बढ़ने में सहायता मिलती है। पथ्य हमेशा नियत समय पर देना चाहिये
पथ्य हमेशा नियत समय पर ही देना चाहिये । घड़ी २ वा कभी किसी समय और कभी किसी समय देना शारीरिक नियमों और प्रकृति के अनुसार ठीक नहीं है। मारवाड़ी में कहते भी हैं कि टैमसर रोटी खाने से वह सीरी होती है। मनुष्य को ज्ञान तन्तुओं का स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वे सदा प्रादत-नियम का अनुसरण करती हैं। पाचक इन्द्रियों को एक दिन १० बजे अन्न पचाना पड़े तो वे दूसरे दिन फिर १०बजे ही अन्न पचाने के लिये तैयार होती है, उत्सुक बनती है वा रहती है पर उस समय पचाने की वस्तु न मिलने से उन्हें हताश होना पड़े अथवा बिना समय भोजन करने से उन्हें ज़बरदस्ती बिना टाइम पचाने के लिये लाचार उधत होना पड़े, अथवा उसके पचाने में डील हो, इनके अतिरिक्त वैद्य
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