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रोगी को जीवनी शक्ति का अन्दाजा लगा कर आवश्यकतामुसार पथ्या के लिये समय, संख्या और परिमाण निर्धारित करता है पर उसके अनुसार न चलने से जल्दी आरोग्यता नहीं मिलती अस्तु वैद्य जिस जिस समय पथ्य देने के लिये काहे उसी २ समय ( रोगी की इच्छा से थोड़ा अन्तर भी किया जा सकता है ) पथ्य दिया जावे। यह नहीं कि जब पध्य बने तब पथ्य दिया जावे।
पथ्य किस २ समय दिया जावे और कितनी बार दिया जावे यह वैद्य इलाज हो के साथ बतला देते हैं । पर साधारण रोगों में ऐसी पूर्ण व्यवथा नहीं भी की जाती है। रोगी को भूख लगे तभी पथ्य देना चाहिये यह एक शास्त्रीय साधारण नियम है, मामूली अवस्था में इसी सिद्धान्त के अनुसार रोगी, को पथ्य दिया जावे, पर असाध्य और कठिन रोगों में पथ्य की खास व्यवस्था रखनी चाहिये और नियत समय में नियत परिमाण काही पथ्य दिया जावे । ध्यान रहे विना वैध की खास आज्ञा के ४)घण्टे के बीच में पथ्य कभी न दिया जावे। घडी २ खिलाने से एक तो दिया हुआ पथ्य पचता नहीं है । पेट को
आराम नहीं मिलता, दवा को अपना असर करने में पूरा समय नहीं मिलता अतः एक बार दिया हुआ पथ्य पच जाने पर दूसरी वार देना चाहिये । समय पर पथ्य देने से दवा देने का समय भी ठीक ढङ्ग से निर्धारित किया जा सकता है। बार २ रोगी को पथ्य लेने के लिये तङ्ग करने से वह व्याकुल हो जाता है। कारण बीमारी में अरुचि रहने से उसे बार २ पथ्य लेने का काम महा भारत जंचता है इस से उसे दिक न किया जावे। - स्मरण रहे नियत समय का यह मतलब नहीं लगाया जावे कि रेल के टाइम के अनुसार ही व्यवस्था रखी जावे ।
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